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केंद्रीय मंत्री गडकरी जावरा आए थे तो बोला था पेट का पानी नहीं हिलेगा गरोठ-जावरा के बीच चंबल ब्रिज पर सबसे ज्यादा खतरा

 

रिपोर्टर मोहम्मद अय्यूब

 

इंदौर/रतलाम/झाबुआ

दिल्ली-मुंबई 8-लेन एक्सप्रेस-वे केंद्र सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक है। इसे 120 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार के हिसाब से डिजाइन किया और इसी आधार पर दिल्ली से मुंबई की दूरी आधे समय में तय करने के दावे हो रहे हैं। ये रफ्तार रोड की खराबी के कारण जानलेवा हो सकती है। वैसे तो केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी अगस्त 2021 में जावरा आए थे तब उन्होंने 170 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से टेस्ट ड्राइव ली और बोनट पर पानी का ग्लास रखकर बोले थे, रोड ऐसा बना है कि पेट का पानी नहीं हिलेगा।

पुलियाओं के दोनों छोर पर सीमेंट-काक्रीट स्लैब से लगा डामर वाला हिस्सा नीचे बैठ गया।

बता दें कि मप्र के हिस्से में रोड चालू हुए अभी सालभर भी पूरा नहीं हुआ और कई जगह अंडुलेशन (ऊंचा-नीचा) की समस्या उभर गई। पुलियाओं के दोनों छोर पर सीमेंट-काक्रीट स्लैब से लगा डामर वाला हिस्सा नीचे बैठ गया। इससे वाहनों को झटके (जर्क) लग रहे हैं।

एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की लागत से यह 1386 किलोमीटर लंबा एक्सेस कंट्रोल ग्रीनफील्ड एक्सप्रेस-वे बनाया जा रहा है। अभी गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान तरफ कई हिस्सों में काम बाकी है लेकिन मप्र में 245 किलोमीटर एक्सप्रेस- वे बनकर तैयार हो गया इसलिए इसे 20 सितंबर 2023 को ही आवागमन के लिए खोल दिया था। यहां विभिन्न कंपनियों ने अलग-अलग पैकेज में काम किया है। जावरा क्षेत्र में ग्रिल और जीएचवी ने इसका निर्माण किया। बाकी हिस्सों में अन्य कंपनियां बनाकर गईं। इनमें से कई कंपनियों ने जल्दबाजी में सबसे पहले काम पूरा करने का श्रेय लेकर एक्सप्रेस-वे तो बना दिया लेकिन अब इसकी हकीकत सामने आ रही है।

पुलियाओं पर झटके खा रहे वाहन, जगह-जगह डामर भी बैठा

भास्कर टीम ने रतलाम से जावरा और जावरा से गरोठ तक एक्सप्रेस-वे पर टेस्ट ड्राइव की इसमें निर्माण की पोल खुलकर सामने आ गई। जावरा से 15-20 किमी दूर मंदसौर तरफ 2-3 पुलिया के छोर पर वाहन झटके खा रहे हैं। गरोठ व जावरा के बीच चंबल नदी जहां क्रॉस कर रही है, वहां सबसे ज्यादा खतरा है। यहां तो वाहन उछल रहे, क्योंकि पुलिया के छोर पर डामर बैठ गया। वहीं एक तरफ की पट्टी पर 4 में से बीच वाली जिस पंक्ति में सबसे ज्यादा वाहन निकल रहे, वहां रोड नीचे बैठ गया। बीच में डामर उभर रहा है। इससे वाहन हिलोरे ले रहे हैं। यानी अंडुलेशन की समस्या के कारण वाहन लहरा रहे हैं।

*कॉम्पेक्शन नहीं होने से आ रही ऐसी दिक्कत, ये सेवा में कमी का मामला*

एमपीआरडीसी एजीएम रहे तथा पीडब्ल्यूडी एसडीओ पद से सेवानिवृत्त सिंहपाल का कहना है डामर से पहले बेस तैयार करते वक्त सही कॉम्पेक्शन (दबाव) नहीं होने से बाद में मिट्टी, मुरम सेटल होकर रोड बैठता है। नेचरूल कॉम्पेक्शन के लिए ज्यादा समय चाहिए जो बड़े प्रोजेक्ट में संभव नहीं। टाइम लिमिट प्रोजेक्ट में मशीनरी उपयोग कर कॉम्पेक्शन करना होता है। फिर भी कहीं सेटमलेंट हो तो तत्काल नई लेयर चढ़ाकर सही करना निर्माता कंपनियों की जिम्मेदारी है। वे नियमित मॉनिटरिंग व ड्राइव कर इसे चेक करें और अंडुलेशन होते ही सही करें, ये उनकी सर्विस का हिस्सा है। यदि वे ऐसा नहीं कर रही तो ये सेवा में कमी है। ऐसी लापरवाही से जो वाहन दुर्घटनाग्रस्त होते, वे क्लेम कर सकते हैं।

*निर्माता कंपनियों को सुधार के निर्देश दिए हैं: एनएचएआई**

चंबल नदी और बैक वाटर वाली जगह बनी दो पुलिया की जगह जम्प महसूस हो रहे, ये सही है। दरअसल जहां एक्सप्रेस-वे ज्यादा ऊंचा है, वहां ज्यादा मुरम- मिट्टी डालकर बेस तैयार हुआ जो बाद में सेटल होना स्वाभाविक है। फिर भी उक्त स्थान चिह्नित करके कंपनियों को निर्देश दिए हैं कि वे डामर काटकर सही करें। – *संदीप पाटीदार,* प्रोजेक्ट डायरेक्टर एनएचएआई, मप्र

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