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व्यक्ति के जीवन में पांच गुरु अवश्य होते हैं, प्रथम मां- कुटीर एवं ग्रामोद्योग मंत्री

 

रिपोर्टर -विकाश विश्वकर्मा

 

शिक्षा के साथ संस्कार को जीवित रखना जरूरी- राज्यमंत्री श्री दिलीप जायसवाल

गुरु के बिना कुछ भी संभव नहीः- विधायक श्रीमती मनीषा सिंह

गुरुओं की सोच हमेशा दूरगामी होती है- आचार्य रोहिणेश्वर पन्नाचार्य

गुरु पूर्णिमा पर आयोजित हुआ कार्यक्रम

हर व्यक्ति के जीवन में पॉच गुरू होते है जिसमें पहले मॉ होती है, फिर पिता,शिक्षक, आध्यात्मिक गुरू और दर्पण जो स्वयं की प्रतिदिन की स्थितियों से अवगत कराता है, ये ऐसे गुरू होते है जो हमेशा नई-नई ऊचाईयों की ओर ले जाते है हमंे अपने गुरूआंे का सम्मान करना चाहिए। उक्त विचार आज कुटीर एवं ग्रामोद्योग मंत्री श्री दिलीप जायसवाल ने संभागीय मुख्यालय के पंडित शंभूनाथ शुक्ल विश्वविद्यालय में गुरू पूर्णिमा महोत्सव के समापन कार्यक्रम में व्यक्त किये।

कुटीर एवं ग्रामोद्योग मंत्री श्री दिलीप जायसवाल ने कहा कि विद्यार्थी बड़े-बड़े स्कूलों, कालेजों जैसे अन्य बड़े शैक्षणिक संस्थाओं में शिक्षा का अध्ययन करते है लेकिन संस्कारो को भूलते जा रहे है, विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ अपने संस्कारों को जीवित रखने के गुणों को भी सिखाना चाहिए। उन्होंने कहा कि माता-पिता अपनी सुख-सुविधाओं को भूलकर बच्चांे बेहतर से बेहतर शिक्षा देने के प्रयास करते है।

उन्होंने कहा कि हमारे देश में गुरू और शिष्यों की परंपरा बहुत प्राचीन है। उन्होंने कहा कि हम सौभाग्यशाली है कि भगवान श्री कृष्ण भी शिक्षा लेने के लिए मध्यप्रदेश के संदीपनी आश्रम उज्जैन आए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी एवं मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में विद्यार्थियों का सर्वार्गीण विकास के लिए शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 35 से 40 वर्ष के बाद नई शिक्षा नीति को लागू किया गया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में अब कुलपति का नाम बदलकर कुलगुरू रख दिया गया है।

कार्यक्रम को सम्बोंधित करते हुए विधायक जयसिंहनगर श्रीमती मनीषा सिंह ने कहा कि हर व्यक्ति के जीवन में गुरू होते है ,गुरू के बिना कुछ भी संभव नही है। उन्होंने कहा कि इस परंपरा को आगे बढाते रहें। गुरु की कृपा स्वरूप ही हमें ज्ञान की प्राप्ति हुई है । उनका आदर पूजन और अभिनंदन करना हमारी भारतीय परंपरा रही है।

कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए आचार्य रोहिणेश्वर पन्नाचार्य ने कहा कि गुरु पूर्णिमा का अपना अलग महत्व है जो पाठ्यक्रम में पढ़ाये वह शिक्षक जो पाठ्यक्रम के बाहर भी दिखे और जिसका ओर-छोर ना हो वह गुरु सर्वव्याप्त है चाहे रामकृष्ण परमहंस हो जिन्होंने विवेकानंद बनाया। उन्होंने कहा कि गुरूओं की सोच हमेशा दूरगामी होती है, गुरू योग्यतानुसार सबको ज्ञान देता है।

कार्यक्रम को कुलगुरू प्रोफेसर रामाशंकर, एडीजीपी श्री डीसी सागर, कुल सचिव श्री आषीष तिवारी व अन्य आचार्याें ने भी कार्यक्रम को सम्बोंधित किया।

कार्यक्रम में समाजसेवी श्री कमलप्रताप सिंह, डॉक्टर आदर्श तिवारी, सभी संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष ,प्राध्यापक ,सहायक प्राध्यापक छात्र एवं छात्राएं उपस्थित थें।

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