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जो भक्त निष्काम भाव से प्रभु को भजता है, उन्हें ही कृपा की पात्रता मिलती है-पंडित प्रतीक मिश्रा

रिपोर्टर यूसुफ पठान

हटा ,दमोह(एमपी) गायत्री शक्तिपीठ में श्रावण मास में चल रही चतुर्थ दिवस की कथा में कथावाचक पंडित प्रतीक मिश्रा ने कहा अग्नि स्तंभ से बड़वानल नामक अग्नि प्रज्वलित हुई । सभी के संताप को नष्ट कर देने वाला बड़वानल का रूप धारण किया फिर भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को आदेश दिया कि आप उस अग्नि को समुद्र को समर्पित कर दो और उससे कहा कि हे सागर इससे आपको कोई हानि नहीं होगी । आप इसे शिव क्रोध अग्नि बढ़ावानल को प्रलय काल तक धारण करो और यह प्रतिदिन तुम्हारे जल का आहार करता रहेगा । भगवान शिव के विवाह की चर्चा माता सती ने जब दक्ष के यज्ञ में प्राणान्त किया तब उस समय माता सती ने यह वरदान मांगा कि हे प्रभु मै हर जन्म में शिव की अर्धांगिनी बनूँ जिसके फल स्वरुप हिमालय के यहां पर माता सती ने पार्वती के रूप में जन्म लिया।

श्री नारद जी महाराज ने हिमालय के पास जाकर माता सती की हस्त रेखा देखी। हिमालय ने नारद जी से पूछा की हे प्रभु आप मेरी पुत्री का भाग्य बताएं और विवाह के संबंध में बताएं कि मेरी पुत्री का पति कैसा होगा तब नारद जी ने बताया कि इनका पति योगी, अनंग, गुणरहित, अकाम,माता-पिता से हीन, अमंगल वेष वाला होगा , ऐसा नारद जी ने माता पार्वती की हस्तरेखा को देखकर कहा । नारद जी के उपदेश अनुसार माता पार्वती ने तपस्या करके भगवान शिव के चरणों को प्राप्त किया। भगवान कहते हैं। अहं भक्त पराधीनम। मैं भक्ति के ही पराधीन हूं अगर कोई भक्त निष्काम मन से मुझे भजता है तो मेरी कृपा की पात्रता उसे अवश्य मिलती है। कथा में प्रतिदिन सैकड़ो श्रद्धालु महा रुद्राभिषेक एवं शिव महापुराण कथा का लाभ ले रहे हैं।

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