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युवाओं का घटता हुआ देशप्रेम- आपकी दृष्टि आपका आंकलन

रिपोर्ट राकेश पाटीदार

दबंग केसरी देपालपुर मप्र यें लेखिका के निजी विचार

पिंकी परूथी “अनामिका

कहाँ कोई दिखता है, गुरु गोविन्द सिंह जी जैसे बहादुर, भगत सिंह जी जैसा निडर, सुभाष चन्द्र बोस की तरह के देशभक्त,,और इनके जैसे कई वीर ,जागरूक एवं ऊर्जावान और उत्साही भी। कोई जागरूक है तो उत्साही नहीं, उत्साही है तो निडर नहीं, निडर है पर बलशाली नहीं, खैर।

क्या कहें जब लोग हल्दी वाले दूध को छोड़कर बोर्नवीटा और हाॅर्लिक्स पीएँ, योग जब योगा एंड एरोबिक्स बने तब करें,गौमूत्र जो संजीवनी बूटी के समान औषधि का काम करती है, इसे लो स्टैंडर्ड माना जाता है जबकि विदेशी कंपनियों ने इसके नौ से अधिक पेटेंट करा लिए हैं, दातुन जो हमें मुफ्त में मिल जाती है, बाहर एक एक डंडी पचास रुपये की मिलती है, और तो और हमारी पुरानी चारपाई अथवा खाट जो पाँच सौ रुपये की बन जाती है, विदेशों में पचास हजार रुपये की बिक रही है,दण्ड बैठक और सूर्य नमस्कार को छोड़कर हजारों रुपये जिम में खर्च करना हमारे बच्चों को अधिक भा रहा है।

कभी सोचा ऐसा क्यों हो रहा है? युवा कुछ भ्रमित से क्यों दिखाई दे रहे हैं?

कहने का तात्पर्य यह है कि हमने हमारी मूल संस्कृति को पिछड़ा हुआ मानकर छोड़ दिया था, और पाश्चात्य संस्कृति और शैली को अपना लिया था, जिसके कारण स्वास्थ्य और ऊर्जा स्तर को कम कर लिया था।

खान पान, रहन सहन और शिक्षा आदि की नकल ने जीवन के मूल उद्देश्य को विस्मृत कर दिया है।

शहरीकरण, विदेशों की नकल, शिक्षा का गिरता स्तर के साथ शारीरिक व मानसिक दुर्बलता जब प्रत्यक्ष दिखाई देती है जब अमानवीय कृत्य होते हुए भी कोई युवा उसका प्रतिरोध करने की अपेक्षा या तो उस परिस्थिति से दूर हो जाता है या फिर कोई बुद्धिजीवी उस समय की विडियो बनाता है।

जिन लोगों को हम अपने जीवन का हीरो मानते हैं, वे जब देशद्रोह के कार्यो में लिप्त पाए जाते हैं, या फिर किसी के लिए देश की क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व करने की अपेक्षा परिवार प्राथमिक हो जाए, जहाँ चारों ओर हर दिन बलात्कार और आत्महत्या, आतंकवाद का ही बोलबाला हो, तो सुख शान्ति की अपेक्षा कैसे की जा सकती है?

दूसरी तरफ धर्मान्तरण का कार्य बहुत धीमी गति से वर्षों से चल ही रहा है, नशा उसमें आग में घी का काम कर रहा है, कुल मिलाकर देश के युवाओं को कमजोर और नपुंसक बनाने का विदेशी प्रयास निरन्तर अनवरत जारी है। धर्म, सभ्यता और संस्कृति के नाम पर कुछ आता जाता नहीं है, बस विडियो गेम और नेटफ्लिक्स पर मूवीज़, दिन रात देखो, देश और दुनिया में क्या हो रहा है, उससे हमें क्या लेना देना?

बात कड़वी है मगर सच है, हम यूँ ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें और कोई भी फिर से हमें गुलाम बना सकता है।

यानी हमें इतना भी लापरवाह होकर नहीं रहना चाहिए कि आस पास क्या हो रहा है, पता ही नहीं चले।

देशभक्ति के लिए केवल दो चार लाइनें बोलकर, वाहवाही नहीं लूट सकते। माजरा बहुत संवेदनशील है, बहुत ही प्लानिंग के साथ देश को सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक आदि रूप से कमजोर किया जा रहा है। असामाजिक तत्वों और उनकी दादागिरी का इतना आतंक फैलता जा रहा है कि सीधा सादा सामान्य मनुष्य डर से समहा हुआ जीवन काट रहा है।

आप भले हैं, जरूरी नहीं सामने वाला भी उतना भला हो।

जड़ों को कमजोर करने से, भ्रष्टाचार और भौतिक आकर्षण से, आपस में कलह करवाकर देश का युवा भ्रमित हो गया है।

उसमें देशभक्ति की भावना वैसी नहीं है जैसी सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, मैथिलीशरण गुप्त, टैगोर, प्रेमचंद आदि की कविताओं और कहानियों में दिखाई देती थी।

देश का सबसे अधिक बंटाधार तो रिजर्वेशन की नीति ने किया, जिसके कारण योग्य और पात्र को उसका सम्मान और हक नहीं मिल पाता, उसमें कुंठित हो देश के प्रति गलत भावना का जन्म हो जाता है।

हर ओर से राजनीतिक दलों का सिर्फ गद्दी के लिए लड़ना,स्वार्थ और लालच के लिए कुर्सी को बचाना, सिर्फ अपने हित के लिए कार्य करना,अस्वस्थ समाज का निर्माण करता है।

ऐसे में युवा भी भटक जाता है।

गलत संगत, अनैतिकता, अति भौतिक संसाधनों का उपयोग, अधिक सुविधाजनक जीवन शैली , आवश्यकता से अधिक लाड़ प्यार, या फिर बिल्कुल बिना लाड़ प्यार का जीवन, बच्चों को उग्र, असहाय, असहनशील ,बना देते हैं।

पहले बड़े जैसा बोलें वैसा करें,

बचपन से ही मेहनत का मूल्य समझाना होगा,

समय और पैसे का महत्व बताना होगा,

संयुक्त परिवार का अनुसरण करना चाहिए जहाँ बच्चे सुरक्षित महसूस करते हैं और घर के बुजुर्गों से बहुत सी बातें सीखते हैं,

व्यायाम और योग का नित्य अभ्यास कराना चाहिए,

वीरता की कहानियाँ सुनानी और पढ़ानी चाहिए,

देश के शहीदों, क्रान्तिकारियों की फिल्में देखनी चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण है कि

नित्य भगवद्गीता और रामायण का पाठ कराना चाहिए,

देश में बनी वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए।

प्रयास तो करने ही होंगे, क्योंकि प्रयास होंगे तो सफलता भी मिलेगी।

सुनहरे भविष्य के लिए आश्वस्त किया जाना चाहिए तब कैसे नहीं हर घर में देशभक्त पैदा होंगे?

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