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बजट: कमजोर वर्ग के लिए एक सरकारी झुनझ किसान नेता एवं आदिवासी कार्यकर्ता :संजय पंत

पत्रकार /संतोष यादव

बस्तर / सरकार द्वारा हाल ही में लाए गये बजट के बारे में समीक्षात्मक टिप्पणी करते हुए इसे पूरी तरह से कागजी, खोखला एवं एक आम नागरिक के साथ धोखे की संज्ञा दी है।

किसान नेता आगे कहते हैं कि सालाना आय-व्यय का विवरण बजट कहलाता है जो किसी देश, राज्य, परिवार या व्यक्ति विशेष का भी हो सकता है। भारत जैसे विशाल एवं विविधता वाले देश में आर्थिक स्थिरता के लिए एक मजबूत एवं कल्याणकारी बजट बनाना केंद्र सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है। भारतीय लोकतंत्र बजट बनाते समय सरकार से आदिवासी, किसान, मजदूर, दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक, महिला, युवा, छात्र, बेरोजगार, दिव्यांग, व्यवसायी सहित समाज के सभी वर्गों के हितों का ध्यान रखने की उम्मीद करता है क्योंकि यह लोकतंत्र सभी का है। केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में प्रस्तुत किए गए बजट ने समाज के सभी वर्गों को निराश किया है। देश की जनता का पेट भरने वाले श्रमजीवी किसान भाइयों की आर्थिक हालात मजबूत करने के लिए बजट में सोचा ही नहीं गया है। कृषि प्रधान भारतीय समाज के लोकतंत्र में प्रस्तुत किया गया यह कैसा बजट है जो किसान भाइयों को उनके द्वारा पैदा किये गए सभी प्रकार के फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी नहीं देता है।देश में बेरोजगारी का स्तर एक चिंतनीय विषय बन चुका है। लगातार हो रहे भ्रष्टाचार एवं पेपर लीक के मामलों ने युवाओं में अपने भविष्य के प्रति भय पैदा कर दिया है। अपने भविष्य के प्रति आशंकित युवा ही गलत रास्ते को चुनता है। समाज के कमजोर वर्गों के आर्थिक स्तर में सुधार करने के लिए बजट में कोई कदम नहीं उठाया गया है। यह बजट जन कल्याण कम बल्कि सरकार में फैली निराशा एवं गठबंधन की मजबूरी को ज्यादा दिखाता है। सरकार का यह बजट कमजोर बहुजन वर्ग के लिए झुनझुना पकडा़ने जैसा प्रतीत होता है।बजट और बस्तर

लौह अयस्क के रूप में देश को हजारों करोड़ रुपए का राजस्व देने वाले बस्तर क्षेत्र के आदिवासी किसान भाइयों के लिए यह बजट कागजी पन्ना मात्र है क्योंकि आम आदिवासी किसान भाई आज भी लाल पानी पीने को मजबूर है। नक्सल हिंसा पीड़ितों के लिए क्षतिपूर्ति एवं पुनर्वास की कोई योजना बजट में नहीं लाना आदिवासी समाज के साथ धोखा है। साल 2012 में बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में हुए फर्जी एनकाउंटर में मारे गए 16 निर्दोष ग्रामीण आदिवासी किसान भाईयों के परिवार वालों को एक-एक करोड़ रुपए मुआवजा देने का प्रावधान भी बजट से गायब है। भारतीय किसान यूनियन सारकेगुड़ा हत्याकांड के पीड़ित परिवारों को जल्दी से जल्दी न्याय देने की मांग करता है।

किरंदुल की बाढ़: लापरवाही और भ्रष्टाचार की हद

पिछले दिनों दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल शहरी क्षेत्र में डैम टूटने से आई बाढ़ ने केंद्र सरकार के उपक्रम एनएमडीसी एवं दंतेवाड़ा जिला प्रशासन में फैले भ्रष्टाचार एवं लापरवाही को उजागर किया है। एनएमडीसी प्रबंधन के भ्रष्ट एवं लापरवाह अधिकारियों के कारण जनता ने अपना सब कुछ खो दिया है। अचानक आयी इस बाढ़ के कारण काले पानी ने इस क्षेत्र के आदिवासी किसान भाइयों की उपजाऊ जमीन को बंजर कर दिया है। भारतीय किसान यूनियन बाढ़ पीडितों के साथ पूरी मजबूती से खड़ा है। एनएमडीसी प्रबंधन द्वारा बाढ़ पीड़ितों को जल्द से जल्द राहत एवं पुनर्वास ना देने की स्थिति में भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले एक व्यापक जन आंदोलन खड़ा किया जाएगा।

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