समीक्षा “शब्दों के बीज” (पुस्तक)

लेखिका:- अनीता कपूर
अनीता कपूर द्वारा रचित पुस्तक ‘ शब्दों के बीज ‘ पद्य विधा खजाने में एक हीरे के समान है , पुस्तक समीक्षा के पहले यदि हम पुस्तक शीर्षक की बात करे तो शीर्षक का विश्लेषण करने से शब्द+बीज,
“शब्दो के बीज” (शब्द बीज) एक साहित्यिक और भाषाई अवधारणा है, जो भाषा के मूल तत्वों को दर्शाती है। यह उन मूल धातुओं, संज्ञाओं, या धातुओं के रूप में हो सकता है, जिनसे शब्द बनते हैं। उदाहरण के लिए, संस्कृत में “गति” (गति) शब्द का बीज धातु “गम्” है, जिसका अर्थ है “जाना” या “चलना”।
इसी तरह, हिंदी और अन्य भाषाओं में भी शब्दों के बीज को समझकर उनके अर्थ और प्रयोग को समझा जा सकता है। यह शब्द की जड़ों और उनके अर्थ को समझने में मदद करता है।
शीर्षक ही जब काव्य के बीज लेकर चला है तो स्वाभाविक है नई पौध स्वस्थ अंकुरित होगी l
उनकी इस पुस्तक में विभिन्न विषयों को लेकर 52 रचनाएं हैं l
उनकी एक प्रमुख रचना ‘ नए मूल्य ‘में उन्होंने रूढ़ियों के बारे में जिक्र किया है l हर नारी को अब शिव बनना होगा…. अर्थात नई सोच का बीज अंकुरित करना होगा l
उनकी रचना ‘ बहती नदी बूंद बूंद… उसकी आंखों में….. आज भी रहता है एक ग्लोब …
अनीता जी कहना चाहती है दर्द की बहती नदियां में विश्व का ग्लोब है जो समस्त दर्द को समेटे हुए है और दर्द के मलबे को बहाना चाहता है l
उनकी रचना ‘ उम्र ‘ मेरे पास से उम्र गुजर रही है….
उम्र खुद के पास से कैलेंडर के दिनांकों की तरह बदल कर निकलती हैं फिर भी लेखिका सोच में क्या बालों की सफेदी पर हाथ फेरू तो क्यूं , गुजरने दो.. यह एक अच्छा संकेत है l
उनकी रचना ‘ उड़ान ‘
तुम सोचते हो खुद को कृष्ण… सुर और बॉसुरी तो हमारी भी अच्छी है…
लेखिका कृष्ण को देख मुस्कुराती है भले ही तुम कृष्ण बनना चाहो बंसी और सुर तो हमारे पास ही है जब हम देंगे तभी मधुर तान पर लोग थिरकते है l
समीक्षक
डॉ सुनीता श्रीवास्तव