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मासिक किराए पर मिल जाते हैं लाइसेंस, नौसिखिए चंद रुपयों में बन जाते हैं मेडिकल स्टोर्स के संचालक

रिपोर्टर धर्मेन्द्र पाटीदार

नीमच जिले में सैंकड़ों दुकानें

जिले भर में शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में करीब 500 मेडिकल स्टोर से अधिक चल रहे हैं। अधिकतर ग्रामीण इलाकों में भी दुकानों का संचालन हो रहा है। जहां झोलाछाप भी रोगियों का इलाज करते हैं। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इस बारे में ठोस कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।

किराए में लाइसेंस

गौरतलब है कि जिले भर में कई दवा विक्रेताओं के पास खुद की फार्मासिस्ट की डिग्री तक नहीं है। ऐसे में डिग्री होल्डर के लाइसेंस किराए पर लेकर दुकानें संचालित की जाती है। इसके लिए दवा विक्रेता लाइसेंसी को घर बैठे ही मासिक तक कि गई राशि बतौर किराए के रूप में देते हैं। किसी भी दवा की दुकान पर दवा की बिक्री के दौरान होने वाली गड़बड़ी का जिम्मेदार उस दुकान का लाइसेंस धारक ही होता है लेकिन अधिकतर दवा की दुकानें किराए के लाइसेंस पर चलाई जा रही है जबकि लाइसेंस धारक दुकान पर होते ही नहीं है।

इसलिए डॉक्टर को दिखाएं दवा

किसी भी अस्पताल में जांच के लिए जाने वाले मरीज को खुद डॉक्टर भी अक्सर दवा खरीदने के बाद उन्हें फिर से दिखाने की सलाह देते हैं। कई बार डॉक्टर की लिखी पर्ची वाली दवा दुकान पर नहीं होने के कारण मरीज को एक जैसी दवा होने की बात कहकर थमा देते हैं। जिससे कई बार मरीज को रिएक्शन भी हो जाता है। जिले में सबसे ज्यादा किराए पर चलने वाले मेडिकल स्टोर मनासा क्षेत्र में है।

एक्सपर्ट व्यू

नाम न छापने की शर्त पर फर्मासिस्ट ने बताया कि दवाओं की दुकानों में फार्मासिस्ट का होना काफी जरुरी होता है। केमिकल और बॉन्ड की जानकारी सिर्फ फार्मासिस्ट को होती है। दवाओं को देने के साथ फार्मासिस्ट मरीजों को दवा खाने का सही तरीका और दवाओं के बीच में समय के अंतर की जानकारी भी देता है।

इनका कहना है

मेडिकल स्टोर में फार्मासिस्ट का नहीं बैठना एक बड़ी समस्या है। इसे मेडिकल इगनोरेंस माना जाता है। ऐसा करने वालों की दुकानों को सस्पेंड किया जाना चाहिए – *ग्राहक दीपक*

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