संतान सुख के लिए माताओं ने की हलषष्ठी व्रत की पुजा

रिपोर्टर संतोष कुमार यदु
रायपुर छत्तीसगढ प्रदेश के सभी जिलो समेत रायपुर जिला अन्तर्गत आने वाले तिल्दा नेवरा के पुरानी बस्ती मे भी बडी ही हर्षोल्लास के साथ माता बहनों ने की कमरछट पुजा जिसे हलषष्ठी व्रत भी कहा जाता है । मान्यता अनुसार इस व्रत को करने से जिस विवाहित महिलाओ की संतान नही हो रही है तो उसे हलषष्ठी की व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ती होती है । और जिसकी संतान है उसकी परिवार की खुशहाली मिलती है । *हलषष्ठी व्रत की पुजा करने का विधान कब और कैसे मनाए जाते है
भाद्रपद महिने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को व्रत रखा जाता है कथा के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बडे भाई बलदेव जी का जन्म हुआ था । माता देवकी की संतान को उसके भाई कंस ने एक एक करके उसके पुत्रो को मारता था ।नारद जी के कहने पर माता देवकी ने हलषष्ठी व्रत किया तब रोहिणी के पुत्र बलराम जी महाराज का जन्म हुआ और देवकी माता के गर्भ से कृष्ण का जन्म हुआ । व्रत करने वाली माताऍ व्रत के दिन हल से उपजाई। हुये अनाज , फलदार, व जमीन पर जाना वर्जित होता है। इस दिन छह प्रकार की सामग्री का सेवन किया जाता है और छह प्रकार की पुजा सामग्री लगता है ।
क्या है छह प्रकार की पुजा सामग्री
पसहर चावल , परसा पता का पतरी, दोना , महुआ का फल , व भोजन बनाने के लिए महुआ का डंठल भैस का दुध दही घ्री व नारियल , छह प्रकार का भाजी मुंगा , खेंडहा ,माखना, पोई चेच अमारी, भाजी अंग्रेज़ी मिर्ची का प्रसाद बनाकर सगरी पुजा कर हलषष्ठी व्रत कथा सुनकर छह प्रकार की पशु पक्षीयो के लिए भोजन दे कर अपने व्रत का परायण करती है । इस प्रकार से व्रत करने वाली महिलाओ ने बताया की कमरछट का उपवास किये है । तिल्दा नेवरा नगर मे भी वार्ड क्रमांक 22 गन्नु बाई तालाब के पास महिलाओ ने हलषष्ठी व्रत की पुजा कीया गया ।