बरेली नगर में हो रहा है जैन संत मुनि श्री श्रेयांस सागर के द्वारा जिज्ञासा का समाधान

रिपोर्टर अमित जैन
रायसेन/बरेली/ मुनि श्री श्रेयांश सागर जी महाराज ने संतभवन में एक जिज्ञासा का समाधान करते हुए कहा..भाव परिवर्तन किसे कहते हैं? संसारी जीव नारकादिक चार गतियों की जघन्य स्थिति से लेकर उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त तक जन्म लेता है।नर्क गति में जघन्य आयु दस हजार वर्ष की है। उस आयु को लेकर कोई जीव प्रथम नरक से उत्पन्न हुआ और मरण को प्राप्त हुआ। इसी प्रकार दस हजार वर्ष के समान समय होते हैं, दस हजार वर्ष की आयु लेकर प्रथम नरक में उत्पन्न हुए और मरण को प्राप्त हुए। पुनः आरंभ एक समय से अधिक दस हजार वर्ष की आयु लेकर उत्पन्न हुआ। इसी प्रकार एक समय बढ़ती बढ़ती नरक गति की उत्कृष्ट आयु 33 सागर पूर्ण करता है। मूल तिर्यञ्च गति में अन्तर्मुहूर्त की जघन्य आयु लेकर उत्पन्न हुई और पहले ही तरह अन्तर्मुहूर्त की गति में एक समान समय अन्तर्मुहूर्त की जघन्य आयु लेकर उत्पन्न हुई। फिर एक-एक समय बढ़ते-बढ़ते तिर्यञ्च गति की उत्कृष्ट आयु तीन महीने समाप्त हो गई है।
पुन: तिर्यंच गति ही मनुष्य गति में भी अंतरमुहूर्त की जघन्य आयु लेकर तीन पल्य की उत्कृष्ट आयु समाप्त हो जाती है। पुन: नरक गति की तरह देव गति की आयु समाप्त हो गई है। ग्रेवेयक में उत्कृष्ट युग 31 सागर की इतनी विशेषता है उत्कृष्ट युग 31 सागर की उत्पत्ति और मिथ्यादृष्टियों की उत्पत्ति ग्रेवेयक तक ही होती है। इसी प्रकार चारों गतियों की आयु पूर्ण करने को भाव परिवर्तन कहते हैं। यह भी कहा है- “नरक की जघन्य आयु से लेकर ऊपर के ग्रेवेयक पर्यंत के सब भावों में यह जीव मिथ्यात्व के प्राचीन हो कर कई बार भ्रमण करता है।” इस प्रकार चारों गतियों की आयु पूर्ण करने को भाव परिवर्तन कहते है मुनि श्री के सुबह और सांय कालीन प्रवचन और प्रश्नमंच
में बड़ी संख्या में श्रद्धालू महिला पुरुष उपस्थित होते हैं.