अहंकार की अग्नि बिना ईधन के जलती है- आर्यिकारत्नमृदुमति माता जी
रिपोर्टर,यूसुफ पठान
हटा,दमोह(एमपी)
धर्म का दूसरा लक्षण है-उत्तम मार्दव । मार्दव का अर्थ मृदुता और उत्तम का अर्थ श्रेष्ठ अर्थात जहां श्रेष्ठ है मृदुता वही मार्दव है। मार्दव धर्म का विरोधी अहंकार, अहंकार करना व्यर्थ है। अज्ञानी व्यक्ति पर पदार्थो को अपना मानता है और उसमें अहंकार करता है, पर घमंड के परिणाम में फल क्या होता है । मुंह के सामने भले ही न कहे, परन्तु परोक्ष में तो कहते ही है कि वह बड़ा घमंडी है। बड़ा अज्ञानी है। यह बात आज नगर में चातुर्मास कर रही आर्यिका रत्न मृदुमति माता जी ने अपने मंगल प्रवचन में श्री पारसनाथ दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर में कही, आर्यिका श्री ने कहा कि अहंकार उस अग्नि के समान है बिना ईधन के प्रज्जवलित होती है। यह आत्मा के गुणों को जलाकर भस्म कर देती है, विनय से जीवन पवित्र व उन्नशील बनाता है। जबकि अहंकार से सदा पतन ही होता है। बड़ी बड़ी सम्पदाओं के धनी, बड़े राजपाठ के अधिकारी राज-महाराजा भी बड़ी दुर्दषा के शिकार होते है। गर्व करने लायक तो यहां कोई बात ही नहीं है। लौकिक स्थिति की बात, जो आज बड़ा धनिक है वह कल तुच्छ बन सकता है और जो आज तुच्छ है वह कल बड़ा बन सकता है, मानव को अपने स्वाभाव में सदैव मृदुता रखनी चाहिए।
पर्वराज पर्यूषण पर्व के दूसरे दिन नगर के चारों जिनालय में मार्दव धर्म विधान हुआ। प्रातः अभिषेक, शांतिधारा एवं पूजन हुआ। संगीतमय पूजन में इन्द्र इन्द्राणियों के द्वारा झूम झूम कर पूजन किया गया। सांगानेर से आई रिया, भूमि, मिति दीदी के द्वारा भी पूजन, अभिषेक कराया गया।