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हरिपुर में चल रही श्री मद्भागवत कथा एवं श्री राम कथा के सप्तम दिवस उमड़ी भक्तों की भीड़

रिपोर्ट देवेंद्र पटेल

सिरोंज। हरिपुर में चल रही सात दिवसीय श्री मद भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सप्तम दिवस कथा व्यास पंडित अंकित कृष्ण बटुक जी ने विभिन्न प्रसंगों की कथा सुनाई। उन्होंने सप्तम दिवस भगवान श्री कृष्ण के अलग अलग लीलाओं का वर्णन किया गया। मां देवकी के कहने पर छह पुत्रों को वापस लाकर मां देवकी को वापस देना सुभद्रा हरण का आख्यान कहना एवं सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कथा व्यास ने बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए यह भगवान श्री कृष्ण सुदामा जी से समझ सकते हैं । उन्होंने कहा कि सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र से सखा सुदामा मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। उन्होंने कहा कि सुदामा द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढ़ने लगे द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वह कृष्ण के मित्र हैं इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु से कहा कि कोई उनसे मिलने आया है। अपना नाम सुदामा बता रहा है जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना प्रभु सुदामा सुदामा कहते हुए तेजी से द्वार की तरफ भागे सामने सुदामा सखा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया दोनों की ऐसी मित्रता देखकर सभा में बैठे सभी लोग अचंभित हो गए। कृष्ण सुदामा को अपने राज सिंहासन पर बैठाया हुआ। उन्हें कुबेर का धन देकर मालामाल कर दिया। जब जब भी भक्तों पर विपदा आ पड़ी है। प्रभु उनका तारण करने अवश्य आए हैं। हरिपुर ग्रामवासियों द्वारा चल रही सात दिवसीय कथा शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न हुई। कथा व्यास अंकित कृष्ण बटुक ने कहा कि जो भी भागवत कथा का श्रवण करता है उसका जीवन तर जाता है। वही कथा व्यास ने ग्राम वासियों को आशीर्वाद देकर कहा की आप इसी तरह भागवत कथा का श्रवण करते रहें। इस अवसर पर बड़ी संख्या में महिलाएं व पुरुष शामिल रहे।

*जिस राजा की प्रजा दु:खी तो समझो वह राजा भी दु:खी है- देवी रमा किशोरी*

राम कथा के सातवें दिन देवी रमा किशोरी ने बताया जब जटायु नासिक के पंचवटी में रहते थे तब एक दिन आखेट के समय महाराज दशरथ से उनकी मुलाकात हुई और तभी से वे और दशरथ मित्र बन गए। वनवास के समय जब भगवान श्रीराम पंचवटी में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे, तब पहली बार जटायु से उनका परिचय हुआ। भगवान श्रीराम अपने पिता के मित्र जटायु का सम्मान अपने पिता के समान ही करते थे। रावण जब सीताजी का हरण कर लेकर गया तब सीताजी का विलाप सुनकर जटायु ने रावण को रोकने का प्रयास किया, लेकिन अंत में रावण ने तलवार से उनके पंख काट डाले। जटायु मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़े और रावण सीताजी को लेकर लंका की ओर चला गया। सीता की खोज करते हुए राम जब रास्ते से गुजर रहे थे तो उन्हें घायल अवस्था में जटायु मिले। जटायु मरणासन्न थे। जटायु ने राम को पूरी कहानी सुनाई और यह भी बताया रावण किस दिशा में गया है। जटायु के मरने के बाद राम ने उसका वहीं अंतिम संस्कार किया। कितनी बड़ी बात है एक गिद्ध जो मांसाहारी है वो भारत का वीर है जो रावण जैसी ताकत के सामने छाती ठोक कर खड़ा हो गया। ऐसे वीरों का देश है ये भारत देश। इसके बाद भगवान राम ने मां सबरी के झूठे बेर का भोग लगाया। कथा वाचक ने कहा राजा की प्रजा दुखी है तो वो राजा भी दुखी है। राजा सोया रहेगा तो प्रजा जागेगी नहीं। विश्वनाथ विश्व कवि हैं, वाल्मीकि वसुंधरा कवि, तुलसी सियाराम कवि और दिनकर राष्ट्र कवि हैं। केवल राम पर विश्वास करो। साहित्य सखा और मित्र हैं। वही कथा वाचक ने सुग्रीव मिलन, वली का वध, लंका दहन,सहित युद्ध का वर्णन सुनाकर

विभीषण राज तिलक सहित राम राज तिलक तक कथा का वरण किया।

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