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युंक्त परिवार की डोर की मिशाल गोपाल सिंह कोदिया आज हमारे बीच नहीं रहे

  • देवास- *चापड़ा* आज *यादव अहीर* बंधुओ और खास कर चापड़ा को एक व्यक्तिगत नुकशान हुवा, चापड़ा (कोदिया परिवार ) पांच भाइयों मे से सबसे बड़े भाई गोपाल जी यादव का आकस्मिक निधन हो गया जो की स्वर्गीय *ऊकार सिंह यादव* के सुपुत्र थे एवं दैनिक स्वस्थ जीवन के कर्मठ व्यक्ति *सेवाराम* जी भतीजे थे, साथ ही *रमेशचंद्र , संतोष,एडवोकेट दयाराम जी,सूरजमल कोदिया* के सबसे बड़े भाई साहेब थे, अर्जुन और राधेश्याम के पापा थे एवं नीलेश, मुकेश, हेमेंद्र, त्रिलोक, अश्विन, धीरज के बड़े पापा थे, इन सबसे बढ़कर वो एक सयुक्त परिवार को लगभग 20- साल से ऊपर चला रहे, समाज मे उनकी साफ छावी केवल उनके कडक व्यवहार के कारण थे,हमें पारिवारिक रिश्तों एवम संयुक्त परिवार के महत्व को समझने की जरूरत ऐसे लोगो से है.
    वर्तमान में पारिवारिक सदस्य के उच्चशिक्षा, नौकरी के लिए बाहर जाने से संयुक्त परिवार खत्म हो रहे है। छोटे परिवार भले ही हमे अपना स्पेस और अपनी मर्जी से उठने, बैठने, पहनने, और दिनचर्या की आज़ादी देते है, लेकिन इससे घर के बड़े बुजुर्गों से मिलने वाले प्यार और रिश्तों की समझ से हम दूर हो जाते है।
    संयुक्त परिवार में रहकर बच्चा बड़ो का आदर करना, त्याग भावना, एक दूसरे का सम्मान करना जैसी अच्छी आदतें बचपन से ही सीख जाता है। एकल परिवार के कामकाजी माता पिता के पास वक्त की कमी के कान बच्चे दादा-दादी, ताया-ताई, चाचा-चाची, बुआ, बड़े छोटे रिश्ते के भाई बहनों के सम्मान, प्यार और अनुभव से वंचित रह जाते है। इस कारण से परिजनों में आपसी प्यार, इज्जत, सहनशाक्ति भी कम होती जा रही है।लेकिन इन सबसे बावजूद रोजाना अच्छी सी डाट के साथ वो हमें समझाते थे, मध्यम परिवार से उन्होंने खुशहाल परिवार मे केवल कड़ी मेहनत से मुकाम पाया, उनका कहना यदि हाथ रुक गये तो शरीर भी रुक जायेगा
  • रिपोर्टर :- मुकेश यादव

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