पर्व राज पर्यूषण दस लक्षण पर्व में उत्तम तप धर्म के दिन मुनि संघ के सानिध्य में भगवान बाहुबली का मस्तकाभिषेक
रिपोर्टःराजेन्द्र तिवारी
दमोह- दिगंबर जैन पर्यूषण पर्व के सातवें दिन उत्तम तप धर्म मनाया गया, इस अवसर पर श्री पारस नाथ जैन नन्हें मंदिर जी मे मुनि श्री प्रयोग सागर जी एवं सुव्रत सागर जी महाराज के सानिध्य में प्रातः बेला में दस लक्षण पूजन उपरांत भगवान बाहुबली का वार्षिक मस्तकाभिषेक समारोह भक्ति भाव के साथ आयोजित किया गयज्ञं भगवान बाहुबली के मस्तकाभिषेक में सकल दिगंबर जैन समाज द्वारा सहभागिता दर्ज करते हुए 1008 कलशों से अभिषेक किया गया। इस अवसर पर मुनि श्री प्रयोग सागर महाराज के मुखारविंद से शांति धारा संपन्न हुई। उत्तम तप धर्म पर मुनि श्री सुव्रतसागर जी ने श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन सिंघई मंदिर में दसलक्षण धर्म की सभा को संबोधित करते हुए कहा कि विश्व का कोई भी कार्य बिना त्याग तपस्या के चलता ही नहीं है जब तक सूर्य में पेड़ तपता नहीं है तब तक उसकी छाया किसी को मिलती नहीं अगर छाया प्राप्त करना हो अथवा किसी को दान करना हो तो उसके पूर्व सूर्य में सूर्य के ताप में तपना ही होगा। उत्तम तब धर्म कहलाता क्या है अपने धर्म को अपने संयम को अपने चरित्र को अगर हमें सुरक्षित रखना है तो तपस्या करनी ही होगी। अगर हम तपस्या नहीं करेंगे तो मोक्ष प्राप्त करने की तो बात दूर है घर गृहस्थी के कार्य भी निर्दोष संपन्न नहीं किया जा सकते। यदि पुरुषों को अपना धर्म सुरक्षित रखना है अथवा माता बहनों को अपना धर्म सुरक्षित रखना है तो दोनों को तपस्या करनी होगी अगर साधुओं को अपना धर्म सुरक्षित रखना है तो उनको साधु पने से ऊपर उठकर थोड़ी तपस्या तो करनी ही होगी।
मुनि श्री ने कहा कि जब भोजन पेट में पहुंचता है तो उसकी शक्ति उत्पन्न होती है और वह शक्ति हमें अगर सही दिशा में लगाने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ तो शक्ति का दुरुपयोग ही पाप कहलाता है शक्ति का सदुपयोग ही पुण्य कहलाता है अगर हम शक्ति का सदुपयोग नहीं कर पाएंगे तो निश्चित रूप से शक्ति का दुरुपयोग होगा जो पाप के लिए भोगों के लिए वासना के लिए निमंत्रण देगा। क्या तपस्या के अभाव में स्त्री का नारी का सील धर्म चरित्र नहीं रहेगा सुरक्षित नहीं रहेगा चरित्र के अभाव में यह पूरी समाज यह पूरा विश्व निश्चित रूप से पतन के गर्त में चला जाएगा। मुनिश्री ने अपनी बात को आगे बढ़ते हुए यह भी बताया कि आखिर हमारा तप त्याग तपस्या भ्रष्ट कहां से होती हैं अर्थात शास्त्रों में लिखा है कि इच्छाओं का दमन करना इच्छाओं का निरोध करना ही उत्तम तप धर्म है। संसार की विषयों की इच्छा का होना ही सबसे बड़ा संकट का समय होता है अगर आप देखें तो ऐसे कई दृष्टांत है जिनसे यह सिद्ध होता है कि आपकी संसार के विषयों की इच्छा बहुत बड़ा अनर्थ करने के लिए तैयार करती हैं जैसे कुछ दृष्टांत यहां पर दिए जा रहे हैं। कैकेई ने एक इच्छा व्यक्त की थी कि भारत को राज मिले और राम को वनवास मिले। सीता ने स्वर्ण हिरण की इच्छा की थी परिणाम सीता का हरण हुआ। महाभारत में राजा शांतनु की पत्नी सत्यवती ने अपने बेटे को हस्तिनापुर के सिंहासन पर बिठाने की इच्छा की थी परिणाम महाभारत हुआ।
ऐसे शास्त्रों में अनेक अनेक दृष्टांत हैं जो यह बताते हैं कि संसार के विषयों की इच्छा करने से हमें बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है और हमें ही नहीं यह पूरे समाज को और यह पूरे विश्व को उन इच्छाओं का फल भोगना पड़ता है पर और इन सब दृष्टांतों से हमें शिक्षा लेनी चाहिए कि जैन धर्म ऐसी इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने के लिए ही शिक्षा देता है कि महाभारत जैसी स्थितियां समाज में निर्मित ना ही हों। अगर आप विचार करें आज सत्यवती नहीं है सीता नहीं है कैकेई भी नहीं किंतु इच्छाओं के मामले में आज हम सत्यवती सीता और कैकई को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं जिसकी कोई औकात नहीं है उसकी भी इच्छाएं अनंत है और आकाश के समान अनंत इच्छाओं पर विजय प्राप्त करने का नाम ही उत्तम तब धर्म है मुनि श्री ने बताया कि इन्हीं इच्छाओं के कारण हमारी आत्मा काली पड़ जाती है गंदी हो जाती है मैली हो जाती है और कई चीज को साफ करने के लिए तप करके धोना होता है।
मुनि श्री ने एक दृष्टांत देते हुए संपूर्ण समाज को समझाया कि एक राजा था उसने अपनी प्रजा पर सभासदों से और मंत्रिमंडल से यह कहा कि क्या आप लोग पूरी सामग्री लेकर के कोयले को धोकर के सफेद बन सकती है इस बात पर सब राजी हो गए सभी लोग अपने-अपने घरों में कोयले को धोने लगे धोते-धोते बहुत समय निकल गया किंतु कोयला जस का तस काफी मेहनत करने के बाद भी कोयले में कोई परिवर्तन नहीं आया वह काला का काला ही रहा इस पर पूरी प्रजा ने राजा से अपनी असमर्थता जताई कि हम कोयले को धो करके सफेद नहीं कर सकते हम पराजित हो गए हैं तब राजा ने प्रजा से कहा कि अगर और कोई हो जो कोयले को धोकर सफेद बन सकता हो तो वह अपना प्रयास कर सकता है इस पर प्रजा तो तैयार न हुई किंतु एक मंत्री तैयार हो गया सभी लोगों ने उसे कोषा की कोयले को कैसे सफेद बनाओगे उसने कोयले को सफेद बनाने का संकल्प लिया उसने राज्यसभा में कोयले के ऊपर थोड़ा सा मिट्टी का तेल डाला और माचिस की तीली से उसमें आग लगा दी थोड़ी ही देर में कोई नजर नहीं लगा और जलने के उपरांत वह लाल हो गया और सूखने के बाद चांदी जैसी सफेद राख हो गई उसने राजा से कहा कि राजा कि देखो कोयल को धोकर नहीं किंतु तपाकर सफेद बनाया जा सकता है।