तिरुपति बालाजी मंदिर का प्रसाद: 200 साल पुरानी है परंपरा
रिपोर्टर – महेंद्र सिंह लहरिया
तिरुपति बालाजी मंदिर, जिसे श्री वेंकटेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, आंध्र प्रदेश के तिरुमला पर्वत पर स्थित है और यह दक्षिण भारत का एक अत्यंत पवित्र और प्रसिद्ध धाम है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार, वेंकटेश्वर स्वामी को समर्पित है, जिन्हें बालाजी, गोविंदा और श्रीनिवास के नाम से भी पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, और जीवन में शुभता व समृद्धि आती है।
इस चमत्कारी मंदिर की प्रतिष्ठा दुनिया भर में फैली हुई है, और हर दिन लाखों श्रद्धालु यहां अपनी आस्था और विश्वास के साथ भगवान के दर्शन करने आते हैं। तिरुपति बालाजी के दर्शन मात्र से भक्तों की अधूरी इच्छाएं पूरी होने की मान्यता है। मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा को अलौकिक और जीवंत माना जाता है, जो समय-समय पर भक्तों के सामने चमत्कार के रूप में प्रकट होती है।
इस मंदिर के कई रहस्यमय पहलू भी हैं, जो भक्तों और विद्वानों को आश्चर्यचकित करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान बालाजी के बाल असली हैं और वे हमेशा निर्दोष एवं दोषरहित रहते हैं। इसके अलावा, भगवान की प्रतिमा के पीछे से समुद्र की लहरों की आवाजें सुनाई देती हैं, हालांकि तिरुमला एक पहाड़ी क्षेत्र है और समुद्र से काफी दूर है। इन रहस्यों का कोई ठोस वैज्ञानिक स्पष्टीकरण नहीं है, जिससे मंदिर और भी अधिक चमत्कारिक प्रतीत होता है।
मंदिर में एक और प्राचीन परंपरा है, जो बाल दान से जुड़ी है। जब भक्तों की कोई विशेष मनोकामना पूरी होती है, तो वे अपने बाल अर्पित करते हैं, इसे भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और आभार के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा, मंदिर का प्रसिद्ध प्रसाद ‘लड्डू’ भी भक्तों के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है। यह दिव्य प्रसाद मंदिर की रसोई में तैयार किया जाता है, और प्रतिदिन लाखों लड्डू बनाए जाते हैं, ताकि किसी भी भक्त को प्रसाद के बिना न जाना पड़े।
तिरुपति बालाजी मंदिर, न केवल अपनी धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके रहस्य और चमत्कार भी इसे दुनिया भर के श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष धाम बनाते हैं।