स्वच्छता को लेकर गांधीजी के विचारों का महत्व
रिपोर्टर मुहम्मद इसरार
“प्रत्येक व्यक्ति को अपना सफ़ाईकर्मी स्वयं होना चाहिए” गांधीजी द्वारा कहा गया यह कथन यह बताता हैं कि गांधीजी के विचारों में स्वच्छता का क्या महत्व था।आज देश में गांधीजी के जन्मदिवस तक स्वच्छता ही सेवा अभियान चलाया जा रहा हैं।इस अभियान का मुख्य उद्देश है कि स्वच्छता के प्रति जागरूकता जन- जन तक पहुँचें एवं सभी देश को स्वच्छ रखने में अपनी सहभागिता दें।इस अभियान के ख़त्म होने में कुछ ही दिन शेष हैं।इस अभियान के तहत पूरे देश,प्रदेश एवं मुरैना ज़िले में भी काफ़ी सारे स्वच्छता से जुड़े कार्यक्रमों का सफल आयोजन किया गया।स्वच्छता का यह अभियान ज़िंदगी भर लोगों को एक विचार के रूप में अपनाना चाहिए तभी स्वच्छता से समृद्धि का यह सफ़र देश कर पाएगा।
*स्वच्छता का महत्व*
गांधीजी के नेतृत्व में भारतीयों को आजादी तो मिल गई, लेकिन स्वच्छ भारत का उनका सपना आज भी अधूरा है। महात्मा गांधी ने कहा था “स्वच्छता स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है”। उन्होंने साफ-सफाई और स्वच्छता को गांधीवादी जीवन शैली का अभिन्न अंग बनाया। उनका सपना सभी के लिए संपूर्ण स्वच्छता का था। शारीरिक खुशहाली और स्वस्थ वातावरण के लिए स्वच्छता सबसे महत्वपूर्ण है। इसका असर सार्वजनिक और व्यक्तिगत स्वच्छता पर पड़ता है। हर किसी के लिए साफ-सफाई, स्वच्छता,और खराब स्वच्छता स्थितियों के कारण होने वाली विभिन्न बीमारियों के बारे में सीखना आवश्यक है। कम उम्र में सीखी गई आदतें व्यक्ति के व्यक्तित्व में समाहित हो जाती हैं। भले ही हम छोटी उम्र से ही भोजन से पहले हाथ धोना, दांतों की नियमित सफाई और स्नान जैसी कुछ आदतें विकसित कर लें,फिर भी हमें सार्वजनिक स्थानों की साफ-सफाई की कोई परवाह नहीं है। महात्मा गांधी ने कहा था, “मैं किसी को भी अपने गंदे पैर अपने दिमाग से गुजरने नहीं दूंगा।”
गांधीजी ने स्वच्छता और अच्छी आदतों पर जोर दिया और अच्छे स्वास्थ्य से इसका घनिष्ठ संबंध बताया। किसी को भी सड़कों पर थूकना या अपनी नाक साफ नहीं करनी चाहिए। कुछ मामलों में थूक इतना हानिकारक होता है कि रोगाणु दूसरों को संक्रमित कर देते हैं। कुछ देशों में सड़क पर थूकना एक अपराध है। जो लोग पान और तम्बाकू चबाकर थूकते हैं उन्हें दूसरों की भावनाओं का कोई ख्याल नहीं होता। नाक से निकलने वाला बलगम,थूक आदि को भी मिट्टी से ढक देना चाहिए। यह विचार गांधीजी ने अपनी गुजराती मासिक नवजीवन में लिखे थे। हमें यक़ीन हैं कि स्वच्छता ही सेवा जैसे अभियान से हम गांधीजी के स्वच्छता के विचारों को जीवन में उतार पायेंगे एवं देश एवं प्रदेश को स्वच्छता के पहल में आगे ले जाएँगे।