नवरात्र का आज तीसरा दिन, सौभाग्य और सुखी जीवन देती हैं मां चंद्रघंटा
रिपोर्ट श्याम आर्य
चंद्रघंटा माता का स्वरूप
माता चंद्रघंटा का रूप अलौकिक है। माता के मस्तक पर अर्ध चंद्रमा विराजमान है, जिस कारण ही इन्हें चंद्रघंटा के नाम से पुकारा जाता है। स्वर्ण की भांति चमकीला माता का स्वरूप 10 भुजाओं वाला है। अस्त्र-शस्त्र से सुशोभित मैया सिंह पर सवार हैं।
जब मां ब्रह्मचारिणी भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त कर लेती हैं तब वह आदिशक्ति के रूप में प्रकट होती है और चंद्रघंटा बन जाती हैं . मां दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार तब लिया था जब संसार में दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था. साथ ही उस समय महिषासुर का भयंकर युद्ध देवताओं से चल रहा था ऐसा शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है
नवरात्र का आज तीसरा दिन है। इस दिन माता दुर्गा के तृतीय रूप चंद्रघंटा की पूजा होती है। नवरात्र उपासना में तीसरे दिन की पूजा का बहुत महत्व है। देवी का यह स्वरूप भक्तों को सभी प्रकार की बाधाओं और संकटों से उबारने वाला है।
मां जगत जननी मां चंद्रघंटा
देवी के मस्तक पर घंटे के आकर का अर्धचंद्र है। इसी कारण देवी के इस रूप को चंद्रघंटा कहा जाता है। माता चंद्रघंटा की पूजा करने से भक्त के समस्त पाप और बाधाएं दूर हो जाती हैं। इसलिए भक्तों को नवदुर्गा के इस स्वरुप की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करना चाहिए। इससे सांसारिक कष्टों से मुक्ति और सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होगा
*नवरात्र में जलती हैं अखंड ज्योति,*
मां का करें स्मरण
नवरात्र में पूजा करते समय हर दिन नवदुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। इसलिए साधकों को पूजा-अर्चना करते समय नवदुर्गा के स्वरूपों का स्मरण करना चाहिए और उनके मन्त्रों को पढ़ना चाहिए।
*चंद्रघंटा का स्वरुप*
देवी के शरीर का रंग सोने जैसा चमकीला है। देवी के दस हाथ हैं। मंद-मंद मुस्कराते हुए देवी अपने दसों हाथों में खड्ग, तलवार, ढाल, गदा, पाश, त्रिशूल, चक्र,धनुष, भरे हुए तरकश लिए हैं, जो साधकों को मुग्ध करते हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी पूजा करने से साधक को निर्भय बनाता है। साधक सौम्य और विनम्र बनता है। साधक के मुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया में एक अद्भुत चमक की वृद्धि होती है
मां चंद्रघंटा माता का मंत्र
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैयुता।
प्रसादं तनुते मद्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
*तीसरा दिन- मां चंद्रघंटा*
देवी के शीश पर आधा चंद्र है, जिसके कारण इस रूप को चंद्रघंटा कहा जाता है। देवी के इस स्वरूप को खीर या दूध से बनी मिठाई का भोग लगाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से जीवन के सारे कष्ट दूर होते हैं और धन व ऐश्वर्य मिलता है।
हिंदू धर्म में, चंद्रघंटा देवी महादेवी का तीसरा नवदुर्गा रूप है, जिसकी पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन ( नवदुर्गा की नौ दिव्य रातें ) की जाती है।
देवी दुर्गाजी की तीसरे स्वरूप का नाम चंद्रघंटा हैं, नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-अर्चन किया जाता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार, मां दुर्गा का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण देवी का नाम चंद्रघण्टा पड़ा है
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और देवी मैना की पुत्री हैं, जिन्होंने नारद मुनि के कहने पर शिव जी की कठोर तपस्या की थी और इसके प्रभाव से उन्होंने शिवजी को पति के रूप में प्राप्त किया था। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है।