उमरिया जिला के गौरव कलमकार,श्री विस्वम्भर प्रसाद मिश्रा जी
रिपोर्टर राजा दिवाकर मिश्रा
मानपुर । प्रतिभा जब अपने रंग बिखेरती है तब प्रतिभावान के साथ उनके माता पिता परिवार सहित ग्राम नगर का नाम स्वर्ण अक्षरो में इतिहास के पन्नो में ऐतिहासिक रूप से दर्ज करा देती है। प्रतिभा सुविधाओं की मोहताज नही वह तो ब्यक्ति में ईश्वर का दिया अप्रतिम गुण है। हो सकता है कि प्रतिभा की सुगंध फैलने में कुछ समय लगे किन्तु एक न एक दिन वह वातावरण को अपनी सुंगध से मनमुग्ध जरूर कर देगी। एक लेखक का हृदय जब भावों का समुद्र बनता है मस्तिष्क सोच और परख के साथ सत्यता का केंद्र बन जाता है जिसके जीवांत उदाहरण है श्री विस्वम्भर प्रसाद मिश्रा जी।*
प्रतिभा ग्रामो में बसती है। जो मिट्टी की पवित्र सोंधी महक में पलती बढ़ती है। विस्वम्भर प्रसाद मिश्रा जी का जन्म उमरिया जिले के ग्राम दमोय के कोपरिहा परिवार में हुआ आप बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी थे। विद्यार्थी जीवन मे भी आप कई सम्मानित किए गए है। कविता लेखन साहित्य लेखन की तमाम विधाओं में आपको माँ सरस्वती की कृपा प्राप्त है। ग्राम दमोय सहित क्षेत्रिय ग्रामो में आपको वैद बाबा के नाम से जाना जाता है। आपको नाड़ी का अच्छा ज्ञान है जिस कारण ग्रामीणों ने आपको वैद बाबा की उपाधि से अलंकृत किया है। आयुर्वेद की विधा से आप लोगो का इलाज करते थे। अब उम्र की वजह आपके दौड़ को कम कर दी है अन्यथा जैसे आज लोगो को इलाज के लिए 108 हॉस्पिटल ले जाती है उसी तरह आपकी साइकल संदेसा प्राप्त होते ही उस दरवाजे पहुचने के लिए दौड़ती थी जहां कोई आपके आगमन की प्रतीक्षा कर रहा है। आप आध्यात्मिक विचारों से युक्त है। हारमोनियम ढोलक सहित कई वाद्ययंत्रों का वादन करने में आप कुशल है रामायण गायन में आपकी गायन शैली तो अति मनमोहक है दिव्य सुरों के आप सुर साधक है। ज्योतिष विज्ञान सहित पंचाग में भी आप कुशल है। दमोय सहित आसपास किसी को कुछ नया लेना हो जैसे गाड़ी, भवन निर्माण या अन्य निर्माण का श्री गणेश करना हो तो कार्य का भूमिपूजन कब किया जाए इस हेतु आपसे सटीक कोई नही था। आज भी आप इस विधा में पारंगत है।*
अभिनंदन पत्र वधाई गीत विदाई गीत सहित आपकी लेखनी उत्कृष्ट रचनाओं में अब्बल रही है। आप ज्ञानयज्ञ की वह कलम है जिस पर स्वमेव गर्व होता है। आपकी कई रचनाएं आकाशवाणी से भी प्रसारित हो चुकी है। जो हम सबके के लिए गौरवपूर्ण है। बीते दिनों आपकी कृति उषा परिणय एवं परिजात प्रकाशित हुई है इसके अतिरिक्त आपकी अन्य रचनाएं अभी डायरी में सुसज्जित है गीतायन,निकुम्भ वध,महोत्कट विनायक, मयूरेश, त्रिवेणी तरंग,अज्ञात वाश,सारंधा,ब्रजनाभ वध, भानुमति जैसी रचनाओं का राम कृपा से जल्द ही प्रकाशन और विमोचन होगा। आपके द्वारा रचित साहित्य समाज के मार्गदर्शक का कार्य करेंगे साथ ही अतीत की स्वर्णिम गाथा का भी बखान करेंगे। युवा पीढ़ी हेतु राष्ट्रप्रेम और इतिहास की महक के साथ भरपूर साहित्य अमृत हैअपनी संस्कृति के प्रति गौरव-बोध वस्तुत: राष्ट्रीय अस्मिता का हिस्सा है और राष्ट्रीय अस्मिता राष्ट्रबोध का अभिन्न हिस्सा है। राष्ट्रभाव से युक्त कवि कलमकार साहित्यकार का संबंध अपनी राष्ट्रभूमि से होता है।’प्रगति, विकास, संस्कृति,इतिहास-भूगोल आदि की जड़ भाषा होती है और भाषा को समृद्ध साहित्य करता है और साहित्य प्रत्येक वर्तमान को कलात्मक एवं यथार्थ रूप में समाज के सम्मुख प्रस्तुत करता है।*
मनुष्य चाहे जितनी प्रगति कर ले, विकास की डींगें हांक ले, सभ्यता का दंभ भरे, पर जब तक वह भीतर से सभ्य नहीं होता, तब तक मनुष्य की सही मायने में प्रगति नहीं हो सकती। बाहरी सभ्यता भौतिक प्रगति को दर्शाती है, तो भीतरी सभ्यता मानवता को, मानवीय मूल्यों के आदर्शों को परिलक्षित करती है समाज की आंतरिक और बाह्य प्रगति के लिए साहित्य हमेशा कल्पवृक्ष बना हुआ है। साहित्य की परिधि समाज का प्रत्येक हिस्सा रही है। यहां किसी प्रकार का भेदभाव नहीं रहा है। साहित्य मनुष्य को बाहर और भीतर से सभ्य बनने में मदद करता है। वास्तव में वह तन और मन की सभ्यता प्रदान करता है। जो साहित्य तन और मन की सभ्यता प्रदान करता है, वह शाश्वत साहित्य होता है।*