टाइम टेबल में ही लगता है खेल पीरियड़

रिपोर्ट विपिन जैन
बड़वाह- तहसील के अंतर्गत आने वाली सरकारी एवं निजी स्कूलों मे नियमित रूप से खेल गतिविधियों को लेकर नियम तो सख्त है, लेकिन इनका पालन कागजों मे अधिक जमीन स्तर पर कम किया जा रहा है। नियमानुसार पढ़ाई के साथ प्रतिदिन खेल का पीरियड लगना अनिवार्य है,लेकिन ऐसा शायद ही स्कूलों मे रहा है, जबकि टाइम टेबल मे जरूर खेल गतिविधियों का जिक्र कर रखा है। वही शासन का आदेश भी हर साल जारी होता है कि क्रीडा का पीरियड भी लगाया जाए। खेल-कूूद से बच्चों का मानसिक विकास होता है और पढ़ाई करने मे मन लगता है। खेलकूद करावने से बच्चा भी नियमित स्कूल आएगा। ऐसे मे राज्यस्तर पर खेल के लिए जिले से बनने वाली टीमों मे भी खिलाड़ियों का प्रदर्शन आशानुरूप नही हो पाता है। हालांकि माध्यमिक शिक्षा विभाग मे भले ही खेल मैदान सभी विद्यालयों मे बन गए हो, लेकिन प्रथम श्रेणाी पद रिक्त चल रहे है। वही बड़वाह तहसील के अधिकतर स्कूलों मे तो खेल मैदान ही गायब है किराऐ के कमरों मे स्कूल संचालित हो रही है। तो शारीरिक शिक्षक भी नही है।
*टाइम टेबल मे खेल पीरियड*
स्कूलों की समय सारणी मे भले ही खेल पीरियड निर्धारित कर रखा हो, लेकिन प्राइमरी-मिडिल व माध्यमिक शिक्षा के निजी स्कूलों मे क्रीडा शुल्क वसूला जा रहा है। खेल गतिविधियों शेक्षणिक कैलेंडर मे शामिल रहती है, इसके तहत खेल पीरियड का समय टाइम टेबल मे निश्चित कर दिया जाता है, पर गतिविधियां नही करायाी जाती है। वही सरकारी स्कूलों विद्यार्थियों से क्रीडा शुल्क वसूल किया जा रहा है। वही कुछ निजी शिक्षण संस्थानों में खेल मैदान ही गायब है फीस के साथ क्रीडा राशि भी वसूल की जा रही है। नियमित खेल सुविधा विद्यार्थियों को मुहैया नही करावने से बच्चों मे मानिसक तनाव पैदा होते जा रहा है। बच्चा मोबाइल के खेलो मे ध्यान बढा रहा है। ऐसे मे कैसे विद्यार्थी खेलों मे अपना हुनर दिखाएंगे। अधिकतर स्कूलों मे खो-खो, कबड्डी, रस्साकस्सी, बॉलीबाल, टेबल टेनिस आदि की सुविधाऐं नही है। इसके अलावा अधिकतर सरकारी स्कूलों मे खेल सामग्री ही गायब है। दैनिक दबंग केसरी को खेल विशेषज्ञ ने बताया कि जिन स्कूलों मे खेल मैदान नही है वह निकट के किसी भी खेल मैदान मे बच्चों को सप्ताह मे दो या तीन दिन ले जाकर खेलों मे प्रारंगत कर सकते है, लेकिन इस ओर निजी और सरकारी स्कूल के प्राचार्य ध्यान नही देते है। इससे बच्चों का मानसिक व शारीरिक विकास पर प्रभाव पढ़ता है। खेल से बच्चों का परीक्षा परिणाम भी अच्छा रहता है।
*पढ़ाने का पता नही, फिर भी दी जा रही ग्रेड-*
सकारी व निजी स्कूलों मे शारीरिक विषय का अध्ययन नही होता है, इसके बाद भी परिणाम जारी कर ग्रेड जारी की जा रही है। जानकारों ने दैनिक दबंग केसरी को बताया कि नियमानुसार इस विषय का भी पेपर होना चाहिए, छात्रों को पूरे विषय की जानकारी होनी चाहिए।
*शारीरिक ही नही बच्चों के मानसिक विकास के लिए भी बेहद जरूरी खेलकूद करना…
खेल बच्चे को व्यस्त बनाए रखने का स्वस्थ और आनंददायक तरीका है। अपने बच्चे को शुरुआती उम्र में खेलों से जोड़ने से उनके समग्र विकास में बड़ी मदद मिलती है। खेल लंबे समय से इंसान को स्वस्थ्य, प्रसन्न रखने में मददगार रहे हैं और बच्चों, युवाओं, वयस्कों और बुजुर्गों को कई तरह के फायदे भी प्रदान करते हैं। हालांकि बच्चों की शारीरिक और मानसिक वृद्धि में खेलों के योगदान को उसके खास परिणाम के तौर पर देखा जा सकता है। जानते हैं खेलकूद के फायदे
*स्पोर्ट्स के जरिए सक्रिय बने रहने से अच्छे स्वास्थ्य में मदद मिलती है*
कई अध्ययनों में यह कहा गया है कि युवा उम्र में सक्रिय जीवनशैली अपनाने और स्वस्थ्य दिनचर्या पर अमल करने से मोटापा, मधुमेह, हड्डियों की कमजोरी और कोलेस्ट्रॉल तथा बाद में ब्लड प्रेशर जैसी गंभीर समस्याओं का खतरा कम किया जा सकता है।
*नियमित व्यायाम से तनाव दूर करने में मदद मिलती है*
किशोरों की तरह बच्चे भी तनाव के उच्च स्तर से गुजरते हैं। यदि यह तनाव बचपन में ही दूर न किया जाए तो इससे गंभीर अवसाद की समस्या पैदा हो सकती है। नियमित व्यायाम, फील-गुड केमिकल रिलीज करने से दिमाग के कुछ हिस्सों को सक्रिय बनाया जा सकता है जिससे चिंता और अवसाद दूर करने में मदद मिलती है। ऐसे केमिकल को न्यूरोट्रांसमिटर्स कहा जाता है और इनमें डोपामाइन, एंड्रोफिंस, नोरेपाइनफ्रिन और सेरोटोनिन शामिल होते हैं। न्यूरोट्रांसमिटर्स मन को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं और शारीरिक गतिविधि बढ़ने पर ये रिलीज होते हैं। इसलिए इसे अवसाद दूर करने में कारगर माना जाता है।
*शारीरिक गतिविधि से शैक्षिक प्रदर्शन में भी सुधार आ सकता है
बचपन में खेलों में सक्रियता से भाग लेना आगामी समय में शैक्षिक प्रदर्शन और समग्र विकास के सुधार के लिए बेहद प्रभावी साबित होता है। अध्ययनों से पता चला है कि जो बच्चे कम उम्र से खेलों में हिस्सा लेते हैं, उनमें ज्यादा सकारात्मक रुख, बेहतर टेस्ट स्कोर के साथ साथ कक्षा में अच्छी आदतों और बच्चों में फोकस और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता अधिक होती है।
*खेलों से चरित्र निर्माण में भी मदद मिलती है*
सीखे गए कौशल और शारीरिक गतिविधियों और खेलने के दौरान इनके इस्तेमाल से बच्चे की वृद्धि एवं विकास में बड़ी मदद मिलती है। ऐसी कई महत्वपूर्ण पारस्परिक मूल्य और विशेषताएं हैं, जो खेलने और टीमवर्क, ऑनेस्टी, वैल्यूइंग हार्ड वर्क जैसे स्पोर्ट्स में भाग लेने से हासिल होती हैं। स्पोर्ट्स के दौरान प्रतिस्पर्धा से बच्चों को सफलताओं और विफलताओं का प्रबंधन करने में मदद मिलती है।इनका कहना- जी… दिखाता हूं जिन स्कूलों मे खेल गतिविधियां नही हो पा रही होगी। वहां प्रारंभ की जाएगी।
*डीएस पिपलौदे, बीईओ, बड़वाह*