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प्रशासन व शासन को आम जनता की समस्याओं के कोई मतलब नही?

संवाददाता संजय देपाले

*धार (बाग)* इस आदिवासी जनपद बाग मे नौकरशाही का आलम किसी राजा महाराजाओं से कम नजर नही आता है।यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था नही यहां राजशाही की व्यवस्था के चलते प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों की पौबारह है जो यहाँ नौकरी के लिये आता है वह यही का होकर रह जाता है। क्योंकि उसे यहाँ का राजनीतिक व आर्थिक माहौल मदमस्त कर जाता है।वहीं इन अधिकारियों की मनमर्जी का राजपाट इस जनपद मे चलता है। बस उसे यहां के राजनेताओं की तासीर को समझना होता है उसकी जेबों का ध्यान रखना जो समझ गया जो उसमे भीग गया वह राजनीतिज्ञों की आंखों के तारें होते है भले ही वह कौनसा भी राजनीतिक दल हो,उसे रानीतिक दल सिद्धांत या उसके चरित्र से कोई मतलब नही,बस उनके नेताओं को साधने की कुबत भरी कलाकारी आनी चाहिए,वे फिर इस क्षेत्र मे विकास के लिये आनेवाले सरकारी धन के मालिकाना हक की तरह हकदार बनकर बैठ सकते है बशर्ते कि उसमें उस धन की भागीदारी उन जिम्मेंदार राजनीतिक दलों के नेताओं को भी उसमें भागीदार बना लें क्योंकि आज की राजनीति व्यवसायिक है,इसलिये फिर इन नेताओं का कोई वजूद नही कोई संगठन नही बस वह इन नौकरशाहों का गुलाम होता है,यह गुलामी तृतीय श्रेणी का कर्मचारी भी करवा सकता है बशर्ते कि उसमें कुबत होनी चाहिए।

पिछले कुछ माह पूर्व जनपद कार्यालय बाग के प्रागंण मे बना एक मात्र सुलभसुविधाघर को जनपद के नौकरशाह सी.ई.ओ.ने घुमटीमाफियाओं राजनीतिक माफियाओं की शंह पर बिना किसी कायदे कानून की प्रक्रियाओं के तुड़वा दिया था कि उन्हें इस सुलभसुविधाघर से बदबू आती थी,जबकि इसके पूर्व अनेकों सी.ई.ओ.आये और चले गये,इस जनपद प्रांगण व आफिस मे कई मर्तबा जिलाधिकारी मीटिंग लेकर घंटो रहे उन्हें बदबू नही आई परन्तु वर्तमान राजशाही ठाठशाही सी.ई.ओ.एम.एस.कुशवाह को बदबू आ गई और सरकारी सम्पत्ति को अपनी जागीर नाजीर समझकर आम जनता को अभावग्रस्त कर तुड़वा दिया परन्तु मजाल है कि किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं तो क्या जनपद, ग्राम पंचायत के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों तक को सलवटें नही आई कि आखिर लाखो की लागत से बना इस सुलभ सुविधाघर क़ो बिना किसी सुविधाओं के विकल्प के आमजनता व खुद इन जनप्रतिनिधियों के लिये बना सुलभसुविधाघर को क्यों तोड़ा गया? कही से कही तक कोई गुंज तक नही हुई ।जबकि इन नेताओं को किसी शासकीय कार्यक्रमों मे आमंत्रित करनें की कोई भूल अगर ये नौकरशाह कर ले तो इसकी गुंज जनपद क्षेत्र ही नही जिले तक गुंजायमान होती है।

इस सुलभसुविधाघर के बारे मे सूचना के अधिकार, सी.एम. हेल्प लाईन, जनसुनवाई मे इस मामले को लेकर एक जागरूक पत्रकार संजय देपाले ने उठाई परन्तु महिनों बीत गयें इस सम्बंधित किसी तरह की कोई जानकारी न तो दी जा रही है न इस मामलें की सुनवाई हो रही है।ताज्जुब तो यह है कि सी.ई.ओ. कुशवाह बड़वानी जिले मे पदस्थ थे वहां उन्हें एक विशेष न्यायालय द्धारा सजा दी गई थी,धार जिलें के उमरबन जनपद मे पदस्थ थे तो जागरूक जनप्रतिनिधियों की शिकायत पर उनके कार्यकाल की जाँच मे जिला पंचायत ने इन्हें दोषी पाया था,परन्तु बाग जनपद क्षेत्र के राजनेताओं को ऐसें अधिकारी ही लाड़ले चहेते होते है क्योंकि यहाँ सभी निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की फौज उसी दिशा मे काम करनें की उत्सुक रहती है जहाँ नियमों विरुद्ध उनको काम मिले व शिकायत पर कोई कार्यवाही न हो।जनपद क्षेत्र मे होस्टलों मे फील्ड मे उनके मुताबिक पोस्टिंग व पदस्थापना भी इन नेताओं के ईशारों पर हो तो कैसा भी अधिकारी हो इन नेताओं को चलेगा।क्योंकि यही तो अब इनका रोजगार है?

खैर पिछले महिनों पत्रकार संजय देपाले ने आम जनता की सुविधाओं को लेकर सी.ई.ओ. द्धारा तोड़ा गया सुलभसुविधाघर पूनः वही बनाने के लिये एवं जानकारी प्राप्त करनें के लिए जनसुनवाई मे धार जाकर इस समस्या पर अपनी दमदारी के साथ बात रखी थी,जिस पर उनकी सुनवाई कर रहे अपर कलेक्टर ने सी.ई.ओ. को तत्काल समाधान के निर्देश दिये थे।जिस पर औपचारिकता के तौर पर एक चलित पेशाब घर वही 100 फुट दूर रख दिया तो क्या सी.ई.ओ. को अब बदबू नही आ रही है या पब्लिक उसी ध्वस्तीकरण सुलभसुविधाघर के आसपास खुले मे उपभोग कर रहे है तो गंदगी व बदबू नही आ रही ऐसे यक्ष प्रश्न हे उनके उत्तर चाहिए परन्तु कौन दे यही संशय है?परन्तु राजशाह नौकरशाह ने जनसुनवाई से मिले निर्देशों का भी अब तक पालन नही किया लगता है?

ताज्जुब तो यह भी है कि इस मुद्दे पर क्षेत्रीय विधायक जो विधानसभा मे विपक्ष के नेता है उनके संज्ञान मे भी यह मामला आया होगा परन्तु स्थानीय सर्मथक सी.ई.ओ. के संरक्षणदाता बन बैठे नजर आते है,ऐसा ही भाजपा मे भी है जहाँ धार सासंद केन्द्र मे मंत्री है परन्तु इस जनपद मे सर्वाधिक आदिवासी महिला पुरुष आते है ज्यादा असुविधा इसी वर्ग के लोगो को होती है इसी वर्ग के नेताओं का इस क्षेत्र मे दबदबा है परन्तु कोई ध्यान नही दे रहा है।ताज्जुब तो यह है कि जनपद अध्यक्ष उपाध्यक्ष महिला है परन्तु वह भी महिलाओं की हो रही असुविधा के बारे मे भी गंभीर नही है।क्योंकि ये सभी नौकरशाही के गुलाम जो है?शायद नौकरशाह ने इन्हें भी गुमराह किया या और प्रभाव मे ले रखा वे ही जाने?

जनपद मे टूटे सुलभसुविधाघर व आसपास खुले मे मजबूर होकर हरकोई वहां अपनी सुविधाएं उपयोग कर रहा है यह हालात नौकरशाह व राजनेताओं को मंजूर है परन्तु सुविधाघर की व्यवस्था कोई कर नही पा रहा है?

क्योंकि इन नौकरशाह व राजशाही को तो वहां आम जनता की सुविधाओं से मतलब नही बल्कि शापिंग काम्पलेक्स बनाकर अपने प्रभावों का दुरुपयोग जो करना है।उसी द्दढ़ निश्चय मे नौकरशाही व राजशाही डटी हुईं है भले ही जनता जाय भाड़ मे?

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