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संत गाडगे बाबा महाराज पुण्य तिथि आज मनाएगा रजक समाज

रिपोर्ट राकेश मालवीय

सिवनी नगर के रहने वाले अलकेश रजक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रजक महासंघ मप्र ने जानकारी देते हुए बताया कि मानवता मात्र के पुजारी एक ऐसे महान संत जिन्होंने जन जागरण कर लोगों को शिक्षा स्वच्छता समरसता के प्रति तब जागरूक किया जब समाज कई अभावों,विसंगतियों,चुनौतियों से जूझ रहा था..वह जिस गांव में जाते थे उस गांव की साफ सफाई ,स्वच्छता के लिए खुद आगे आ कर समाज को साथ ला कर प्रेरणा दिया करते थे झाड़ू लगाना नाली की सफाई ऐसे कार्यों को वे हीन कार्य ना मान कर निसंकोच हो कर करते थे और सभी को स्वयं उदाहरण बन कर प्रेरित करते थे इस कार्य में उन्हें गांव के लोग सहयोग के रूप में कुछ दान देते थे उसे हम उनका पारिश्रमिक भी कह सकते हैं उस राशि से वह गरीब के बच्चों को पढ़ने स्वास्थ्य संबंधित निदान करना धर्मशाला बनाना और अन्य आवश्यक सुविधाओं के लिए इत्यादि कार्य किया करते थे उस महान संत का नाम है संत गाडगे जी महाराज संत गाडगे बाबा ने अपने जीवन काल में अनेकों चिकित्सालय धर्मशाला पाठशाला इत्यादि का निर्माण किया सब समाज को समर्पित किया

आज स्वच्छता अभियान का जो दृश्य दिख रहा है यदि सही मायने में माना जाए तो स्वच्छता अभियान के जनक संत गाडगे जी महाराज ही है सबसे पहले स्वच्छता को लेकर के जागरूकता संत गाडगे जी महाराज ने की इसका उदाहरण है महाराष्ट्र में संत गाडगे जी महाराज के नाम पर अनेकों चिकित्सालय एवं पाठशालाएं निर्मित है परंतु अब उन्हें भुलाया जा रहा है..इसकी स्थित की समीक्षा करें तो ये हमारी कमी भी दर्शाता ,हम पर प्रश्न चिन्ह खड़े करता है.. हमें उन के कार्यों पर गर्व होना चाहिए, उन्हीं के मार्ग पर गौरव के साथ बढ़ना चाहिए..

आज हम देख रहे हैं की महापुरुषों को संतो को लोग अपनी जाति के अनुसार मान रहे हैं मेरा मानना यह है जो संत होते हैं वह किसी जाति के नहीं होते समाज के होते हैं संत गाडगे जी महाराज का जन्म रजक धोबी समाज में हुआ उसके बावजूद उन्होंने जो कार्य किया मात्र अपनी अपनी जाति के लिए नहीं बल्कि , समाज का अंग,आदर्श नागरिक और एक संत के नाते सम्पूर्ण समाज के लिए किया ..लोगों को नागरिक अनुशासन का स्वयं कार्य कर के पाठ पढ़ाया..वह जब सफाई , शिक्षा देने जाते थे वे किसी की जाती नहीं पूछते थे सभी के लिए भाव सामान्य रहता था क्योंकि वह वास्तविक में संत ही थे स्वयं को पुजवाने वाले नहीं समाज को सुधारने वाले प्रवचन देकर नहीं कर्म करके दिखाने वाले संत थे संत गाडगे जी महाराज

गाडगे महाराज, जिन्हें लोकप्रिय रूप से संत गाडगे जी महाराज या गाडगे बाबा कहा जाता था. एक संत और समाज सुधारक थे. व्यापक रूप से महाराष्ट्र के सबसे बड़े समाज सुधारकों में से एक के रूप में माना जाता है, उन्होंने कई सुधार किए हैं. गाँवों का विकास और उनकी दृष्टि अभी भी देश भर के कई दान संगठनों, शासकों और राजनेताओं को प्रेरित करती है. उनके नाम पर कॉलेज और स्कूल सहित कई संस्थान शुरू किए गए हैं. उनके बाद भारत सरकार द्वारा स्वच्छता और पानी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा की गई. उनके सम्मान में अमरावती विश्वविद्यालय का नाम भी रखा गया है. उनके सम्मान में महाराष्ट्र सरकार द्वारा ‘संत गाडगेबाबा ग्राम स्वछता अभियान’ शुरू किया गया था.

गाडगे बाबा जी का वास्तविक नाम देवी दास देबू की जानोकर था उनके पिताजी का नाम झिंगरा जी जनोकर एवं मां का नाम सुखवंती था

नाम संत गाडगे महाराज और गाडगे बाबा

वास्तविक नाम देविदास डेबुजी जानोरकर

इनका जन्म 23 फरवरी 1876

महाराष्ट्र के अमरावती जिले के शेडगाँव गाँव में एक धोबी परिवार में हुआ था. वह अपने नाना के घर मुर्तीज़ापुर तालुक के दापुरी में पले-बढे थे. बचपन में उन्हें खेती और मवेशियों में दिलचस्पी थी. उन्होंने 1892 में शादी की और उनके तीन बच्चे थे. अपनी बेटी के नामकरण समारोह के दौरान, उन्होंने पारंपरिक शराब के बजाय मीठे के साथ शुद्ध शाकाहारी भोजन परोसा. उन्होंने 1 फरवरी 1905 को एक संत के रूप में अपने जीवन को आगे बढ़ाने के लिए अपने परिवार को छोड़ने से पहले अपने गाँव में एक स्वयंसेवक के रूप में काम किया.

उन के व्यक्तित्व और कार्य से प्रभावित हो कर गांधी,अंबेडकर जैसे नायक भी उन से प्रेरणा,दृष्टिकोण,मार्गदर्शन प्राप्त करने आते थे..उन्होंने छोटे कहे जाने वाले समाज के लिए आवश्यक और महत्वपूर्ण कार्य कर पूरे भारतीय समाज को एक सूत्र में बांध कर समाज के स्व की जागृति के लिए कार्य किया,समाज को स्वालंभी ,आत्मनिर्भर,सामर्थ संपन्न बनाने का ऐसे कार्य किया जिसे आगे बढ़ा कर एक आदर्श समाज का निर्माण किया जा सके..

वह अपनी पहचान झाड़ू लेकर चलते थे और टोपी पहनते थे. जब भी वह किसी गाँव में पहुँचते थे तो वह गाँव की नालियाँ और सड़कें साफ करते थे और अगर ग्रामीणों द्वारा पैसा दिया जाता है, तो वह इसका इस्तेमाल समाज के लिए कुछ अच्छा करने के लिए करते थे. गाडगे महाराज ने कई शैक्षणिक संस्थानों, धर्मशालाओं, अस्पतालों और पशु आश्रयों को उनके द्वारा प्राप्त धन के साथ शुरू किया है. उन्होंने कीर्तन के रूप में भी कक्षाएं संचालित कीं, ज्यादातर कबीर के दोहे समाज को नैतिक सबक देते हैं. उन्होंने लोगों से सरल जीवन जीने, धार्मिक उद्देश्यों के लिए पशु वध को रोकने और शराब के खिलाफ अभियान चलाने का अनुरोध किया. उन्होंने गरीबों को कड़ी मेहनत, सरल जीवन और निस्वार्थ सेवा का उपदेश दिया. उन्होंने अनाथों और विकलांगों के लिए धार्मिक स्थानों और घरों में धार्मिक स्कूल भी स्थापित किए. 20 दिसंबर, 1956 को अमरावती जाते समय महाराज की मृत्यु हो गई..

 

उन्होंने अपने जीवन काल में स्वयं ऐसे कार्य किए और ऐसे उदाहरण स्थापित किए जो आज भी नागरिक अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं और आगे भी सभी को प्रेरित करेंगे ..

 

आज भी समाज में कई चुनौतियां हैं,ऐसे में उन के पढ़ाए गए पाठ को पुनः पढ़ कर कार्य करने की आवश्यकता है..तभी हम एक आदर्श समाज का निर्माण कर पाएंगे..और एक आदर्श नागरिक के नाते अपने सभी कर्तव्य निभा पाएंगे..

उन की पुण्य तिथि पर , उन के कार्य को आगे बढ़ाना, उन के आदर्शों पर चल कर और समाज और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे कर उन्हें हम श्रद्धांजलि देने का संकल्प लें..यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी..

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