श्री शिव महापुराण कथा का तीसरा दिवस- माता-पिता का सम्मान व गुरूओं के आदर से ही हम जीवन में बेहतर मनुष्य साबित हो सकते हैं- पंडित शुभम कृष्णा दुबे

रिपोर्ट सुनील राठौर
बैतूल । भौरा नगर के मां बिजासन देवी मंदिर प्रांगण में मालवीय परिवार द्वारा आयोजित श्री महाशिव पुराण कथा के इस आयोजन में कथा के श्रवण करने आस पास से भारी संख्या में महिला पुरूष उमड रहे है। गुरुवार को कथा के तीसरे दिन कथावाचक शुभम कृष्णा दुबे जी महाराज ने श्री महाशिव पुराण कथा की महिमा के बारे में बताया। उन्होंने ने बताया कि शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव की पूजा, रुद्र मंत्रों का जाप, शिव मंदिर में उपवास ये मोक्ष सनातन मार्ग हैं। अत: इसे अवश्य करना चाहिए। कथावाचक शुभम कृष्णा दुबे ने बताया कि मनुष्य को एक-दूसरे के प्रति प्रेम व सम्मान के भाव को रखने की बात कही। इस दौरान उन्होंने कहा कि माता-पिता का सम्मान व गुरूओं के आदर से ही हम जीवन में बेहतर मनुष्य साबित हो सकते हैं।
इस संसार में कौन सुखी है, सभी दुखी है। किसी को शरीर का दुख, किसी का तन, मन और धन का दुख है इसलिए सभी दुखी है। उन्होंने श्रोताओं से कहा कि उनसे ज्यादा दुखी तो बड़े-बड़े महाराज है। उनके दुख को कोई दूर नहीं कर सकता है। अपने दुख को काटना है तो स्वयं को प्रयास करना पड़ेगा और महादेव को जल चढ़ाने से सब दुख दूर हो जायेंगे। कथावाचक पंडित दुबे ने शिव पुराण कथा का रसपान कराते हुए गुरुवार को तीसरे दिन कहा कि भगवान शिव की आराधना करने वाला भक्त कभी दुखी नहीं रहता। भगवान भोलेनाथ हर भक्त की सुनते हैं। भोले की भक्ति में शक्ति होती है। भगवान भोलेनाथ कभी भी किसी भी मनुष्य की जिंदगी का पासा पलट सकते हैं। बस भक्तों को भगवान भोलेनाथ पर विश्वास करना चाहिए और उनकी प्रतिदिन आराधना करनी चाहिए।
पंडित शुभम कृष्णा दुबे ने नारद के अहंकार की कथा सुनाते हुए कहां की एक बार नारद जी को अपनी भक्ति पर अभिमान हो गया था। तीनों लोकों में जाकर नारद जी अपनी भक्ति का खुद से गुणगान करते थे। सबसे पहले उन्हें ब्रह्मदेव ने ऐसा करने से मना किया। इसके बाद देवों के देव महादेव ने भी उन्हें खुद की प्रशंसा करने से मना किया था। हालांकि, नाराज जी कहा मानने वाले थे। उनके मन में तो सर्वश्रेष्ठ भक्त का अहंकार आ गया था। जगत के पालनहार विष्णु जी को भी जानकारी मिली कि नारद जी तीनों लोकों में अपनी भक्ति का डंका पीट रहे हैं।
तब भगवान विष्णु ने नारद जी की बड़ी परीक्षा ली। उन्होंने माया के बल पर एक नगर बसाई। एक बार जब नारद जी कैलाश से लौट रहे थे, तो मार्ग में भगवान विष्णु द्वारा रचित माया नगरी को देख आश्चर्यचकित हो गए। तत्क्षण राजा से मिलने नगर पहुंच गए। उसी क्षण राजा की पुत्री को देख नारद जी बोले- इन्हें तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ वर मिलेगा। यह कहकर नारद जी माया नगर से प्रस्थान कर गए। हालांकि, मार्ग में उन्हें अनुभूति हुई कि वर्तमान समय में तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ मैं ही हूं, क्योंकि मैं सबसे बड़ा नारायण भक्त हूं और जब सप्तऋषियों ने गृहस्थी बसा ली, तो मुझे विवाह करने में क्या आपत्ति है ? यह सब सोच नारद जी, जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास पहुंचे।
भगवान विष्णु को पूर्व से ही नारद जी के विवाह की जानकारी थी। इसके लिए नारद जी का आदर-सत्कार कर बोले- आपके मन में भी गृहस्थी बसाने की कल्पना है। नारद जी मंद-मंद मुस्कुरा कर बोले- हां, प्रभु! बस आप मुझे रूपवान बना दें। मैंने तो अब तो माया को भी जीत लिया है। इसके लिए मुझसे कोई सर्वश्रेष्ठ वर तीनों लोकों में नहीं है। सुन भगवान विष्णु बोले- आपकी इच्छा पूरी हो। इसके पश्चात, स्वयंवर के दिन नारद जी राजा के दरबार पहुंचे। अन्य राजाओं की तरह खुद भी विवाह हेतु पंक्ति में बैठ गए। इसके बाद पुत्री ने विष्णु जी की माया द्वारा रचित राजा के गले में वरमाला डाल दी।उस समय नारद जी अपनी जगह पर उठते बैठते रहें। विवाह कार्यक्रम संपन्न होने के बाद शिवगण ने नारद जी के उछलने का औचित्य जानना चाहा। यह सुन नारद जी क्रोधित हो उठे। गुस्से में बोले- मुझमें क्या कमी है, तो शिवगण बोले- आप इंसान नहीं, बल्कि बंदर हैं। एक बार अपनी छवि तो देख लें।
यह सुन नारद जी ने अपनी छवि देखी, तो बेहद क्रोधित हो उठे। उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस तरह पत्नी वियोग में जला हूं। आप भी मृत्यु लोक में अपनी पत्नी के वियोग में तड़पेंगे। त्रेता युग में भगवान विष्णु जी ने राम रूप में जन्म लिया था। नारद जी के श्राप की वजह से उन्हें सीता वियोग से गुजरना पड़ा था।