वन विभाग के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बिना अनुमती पर कदम न उठाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को दिया आदेश

रिपोर्टर-संजय मस्कर
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों को स्पष्ट आदेश दिया कि वे बिना अनुमति के ऐसा कोई कदम न उठाएं जिससे वन क्षेत्र कम हो। न्यायमूर्ति कृष्णन की पीठ के समक्ष वन संरक्षण अधिनियम, 2023 में संशोधन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने ये आदेश जारी किए।
पीठ ने कहा, “हम ऐसी किसी भी चीज की इजाजत नहीं देंगे जिससे वन क्षेत्र कम हो जाए।” “हम आदेश देते हैं कि अगले आदेश तक केंद्र या किसी भी राज्य द्वारा ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जाएगा जिससे वन भूमि में कमी आए, जब तक कि प्रतिपूरक भूमि उपलब्ध न कराई जाए।” केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पीठ को बताया कि उन्होंने कहा कि वह इस मामले में दायर आवेदनों का तीन सप्ताह के भीतर जवाब देंगी। उन्होंने यह भी कहा कि अगली सुनवाई से पहले अदालत के समक्ष स्थिति रिपोर्ट पेश की जाएगी।
● पिछले साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य का संज्ञान लिया था कि संरक्षण अधिनियम, 2023 के तहत वन की परिभाषा के अनुसार लगभग 1.99 लाख वर्ग किलोमीटर वन भूमि को ‘वन’ श्रेणी से बाहर रखा गया था और इसे वन भूमि के रूप में उपलब्ध कराया गया था। अन्य प्रयोजनों के लिए।
● पीठ ने कहा था कि चिड़ियाघर या जंगल सफारी शुरू करने के किसी भी प्रस्ताव को सर्वोच्च न्यायालय की मंजूरी की आवश्यकता होगी। इसके बाद अदालत ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली वन भूमि का ब्योरा 31 मार्च, 2024 तक केंद्र को उपलब्ध कराएं। ● न्यायालय ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा दिए गए वन क्षेत्र, अवर्गीकृत वन भूमि और सामुदायिक वन भूमि का पूरा विवरण अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध कराने का भी आदेश दिया।