आदिवासी विभाग सहायक आयुक्त सतेंद्र मरकाम कि मनमानी भगवान भरोसे जिले के छात्रावास, छात्रावास अधीक्षिका वर्षा शर्मा की लापरवाही से हादसे का शिकार हुई 3 छात्राएं

रिपोर्ट -मुकेश नागवंशी
छिंदवाड़ा दबंग केसरी।छिंदवाड़ा जिले में जनजातीय कार्य विभाग लगता है भगवान भरोसे ही है, विगत कुछ महीने पहले जिला के मुख्यालय में सहायक आयुक्त सतेंद्र मरकाम के केबिन में घुसकर एक महिला हॉस्टल इन्जार्ज ने चप्पलों से धुनाई कर दी थी, सहायक आयुक्त की कार्यशैली इतनी बुरी है कि इनकी ही अधीनस्थ काम करने वाले एक कर्मचारी द्वारा जिले के विभाग प्रमुख की चप्पलों से पिटाई कर दी जाती है, इससे विभाग प्रमुख सहायक आयुक्त की कार्यशैली पर सवाल उठना लाजिमी है।जिले के अधिकतर छात्रावासों में लापरवाही चरम पर है कहीं छात्र-छात्राओं कि दुर्घटना हो रही है तो कहीं पर छात्र-छात्राएं फूड पाइजनिंग का शिकार हो रहे है।
सूत्रों कि माने तो अधिकतर छात्रावासों के अधीक्षक – अधीक्षिका मोटी रकम देकर छात्रावास एवं आश्रमों के अधीक्षक बनाए जा रहे हैं,यह खेल जिले में बदस्तूर जारी है और इस खेल में मुख्य किरदार होता है तो वह है मंडल संयोजक का यहां पर अंगद की तरह पैर जमाए बैठे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मंडल संयोजक रवि कनोजिया जिसके ऊपर भ्रष्टाचार,छेड़खानी सहित तमाम आरोप लग चुके हैं।जिसकी जांच हुई पुलिस में एफआईआर दर्ज हुई कुल मिलाकर समझौता करके मामला रफा दफा करना पड़ा,ऐसे भ्रष्ट मंडल संयोजक पर विभाग द्वारा मेहरबानी करते हुए क्षेत्रीय संयोजक क्षेत्रीय अधिकारी बना दिया जाता है।
वहीं पर छिंदवाड़ा जिले के *चौरई स्थित शासकीय अनुसूचित जनजाति कन्या छात्रावास* में एक गंभीर मामला सामने आया जिसमें पलकों को बिना जानकारी के यहां पदस्थ अधीक्षिका ने किसी अनजान व्यक्ति के हवाले तीन बालिकाओं को छुट्टी दे दी जिसमें उस अनजान व्यक्ति की सड़क हादसे में मौत हो गई और वो तीनों बालीका इस हादसे में गंभीर रूप से घायल है, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के वर्ग के छात्र-छात्राएं आय दिन शोषण का शिकार हो रहे हैं सहायक आयुक्त मूक बने बैठे हैं।
देखना यह होगा कि उनका इसी प्रकार से शोषण और इसी प्रकार से उनकी जान के साथ खिलवाड़ लगातार होने का सिलसिला कब जारी रहता है इन पर आगे कोई कार्यवाही भी होती है या नहीं।
इनका कहना है…….
आदिवासी विभाग के सहायक आयुक्त सतेंद्र मरकाम स्वयं आदिवासी वर्ग से हैं लेकिन उनके कार्य किसी भी प्रकार से आदिवासी वर्ग के उत्थान की ओर नहीं दिखाई देते हैं। सहायक आयुक्त सिर्फ अपना भला करने में लगे रहते है, उत्थान कि जगह पर वह ज्यादा समय ठेकेदार एवं सप्लायरों से सांठ गांठ करते हुए देखे जाते हैं।