श्रीमती माया बैरागी की नारी पर एक किताब लिखूं रचना प्रकाशित

रिपोर्ट -एच बी पटेल
रतलाम निप्र सैलाना – अपने नवाचारों के माध्यम से पढ़ाने वाली नवाचारी शिक्षिका श्रीमती माया बैरागीकी महिला दिवस पर लिखी अपनी रचना नारी पर एक किताब लिखू देश के विभिन्न अखबारों में प्रकाशित हुई,रचना की लेखनी काफी ह्रदय को छूने वाली है इसलिए पाठकों को खूब पसंद आई ,विशेष कर महिलाओं को ,रचना की लेखनी कुछ इस प्रकार है ,सोचती हूं नारी पर एक किताब लिखूं,गुनगुनाता हुआ नगमा कोई,या भला सा कोई ख्वाब लिखूं,सोचती हूं नारी पर एक किताब लिखूं ,दिल की गलियों को शहाब लिखूं,इंतेसाब जिंदगी के हिसाब कोई,या गरम मुंडेरों की आफताब लिखूं,
सोचती हूं नारी पर एक किताब लिखूं,आते जाते मौसमों का सवाल लिखूं, सुनहरी रुत की खूबसूरती बेमिसाल कोई,
या गुजरे हुए माह ओ साल लिखूं,
सोचती हूं नारी पर एक किताब लिखूं,हसीन यादों की झीलमिलाती वादियां लिखूं,
जगमगाती जिंदगी की रवानियाँ कोई,या मन की हसरतों का मलाल लिखूं,सोचती हूं नारी पर एक किताब लिखूं । यह रचना नवाचारी शिक्षिका श्रीमती माया बैरागी महिला दिवस पर अपने विचार व्यक्त करते हुवे लिखी गौरतलब है की अध्यापिका एक उत्कृष्ट शिक्षिका के साथ स्वतंत्र ,लेखिका एवं रचनाकार भी है ,यह जानकारी शिक्षक श्री दशरथ जी बैरागी ने सैलाना रतलाम,मध्यप्रदेश से दी ।