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शासकीय भूमि पर बेजा कब्जा, जल जंगल जमीन का रक्षक मौन तो दोषी है कौन

रिपोर्ट – शेराज ख़ान

छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुखिया श्री विष्णु देव साय जी का गृह जिला जशपुर, या यूं कहें प्रदेश में बहने वाली विकास रुपी मां गंगा का उद्गम स्थल जशपुर !

जी हां इसी जशपुर की बात हो रही है जिसने देश प्रदेश को कई कोहेनुर से दमकते जन नायक दिये हैं, जिन्होंने सिर्फ अपने प्रदेश ही नहीं अपितु भारत राष्ट्र के इतिहास के पन्नों में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवाया है !

और इसी जशपुर जिले में स्थित है विकासखण्ड मुख्यालय बगीचा जिसके अंतर्गत आता है तहसील मुख्यालय सन्ना जिसकी पहचान छत्तीसगढ़ प्रदेश के सबसे खुबसूरत तहसीलों के सिरोमणी के रूप में बनी हुई है ! तहसील सन्ना की भौगोलिक स्थिति इसे सबसे खुबसूरत तहसीलों में से एक बनाती है क्योंकि तहसील मुख्यालय सन्ना “जल जंगल जमीन” के बीच बसती है और आज इसी ‘जल जंगल जमीन” के रखवालों को जगाने की जरूरत महसूस होने लगी है !

मामला तहसील मुख्यालय सन्ना के ग्राम पंचायत सरधापाठ के आश्रित ग्राम पकरीटोली से जुड़ा हुआ है जहां धड़ल्ले से शासकीय भूमि पर अवैध कब्जा किया जा रहा है !

प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम पकरीटोली स्थित शासकीय भूमि खसरा नंबर 1087 जिसमें “गौठान” की स्थापना की गई है ये अलग बात है कि “गौठान” सिर्फ नाम का है क्योंकि आज तक वहां गौ माताओं के सेवा का कोई भी उपक्रम प्रारंभ नहीं किया गया है !

ज्ञातव्य हो कि ग्राम पकरीटोली गौठान जो खसरा नंबर 1087 पर बनाया गया है, के अगल बगल शासकीय भूमि स्थित है जिसमें गांव के दबंगों के द्वारा धड़ल्ले से कब्जा किया जा रहा है और वर्तमान में संबंधित विभाग को इस बात की भनक तक नहीं ! इसी तरह के अवैध कब्जे का प्रयास दबंगों के द्वारा पुर्व में भी किया गया था किन्तु तब सरकारी तंत्र ने तत्परता के साथ बेदखली की कार्यवाही करते हुए ग्रामीण दबंगों के मनसुबों पर पानी फेर दिया था !

और अब एक बार फिर से शासकीय भूमि को हड़पने की चाह रखने वाले लोग अपनी मंशापुर्ती का कार्य प्रारंभ कर चुके हैं, शासन प्रशासन की आंखों में धुल झौंककर या यूं कहा जाए उनके नाक के नीचे से सरकारी सम्पत्ति पर अवैध कब्जा करना शुरू कर चुके हैं !

ऐसा नहीं है कि इन अवैध बेजा कब्जा धारियों के बारे में संबंधित विभाग को जानकारी नहीं होती है, पाठक्षेत्र के जागरूक नागरिकों के द्वारा सम्भवतः इन बातों को संबंधित पदाधिकारियों तक पहुंचा दिया जाता है किन्तु संबंधितों की उदासीनता ही “चिंता का विषय” बन जाती है!

जब “जल जंगल जमीन” के रखवाले ही आंखें बंद किए पड़े रहेंगे तो प्रकृति की रक्षा कौन करेगा ये सवाल लाजिम है !

यहां दोषी अवैध कब्जा करने वाले हैं या आंखें बंद करके सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने वाले जिम्मेदार सरकारी मुलाजिम हैं, ये तय करना सरकार का काम है, जनता जनार्दन तो सिर्फ़ इन्हें बचाने, इन्हें सुरक्षित रखने की गुहार लगा सकती है !

पाठक्षेत्र वासियों की चाह तो सिर्फ़ इतनी सी है कि जंगल जल जमीन की रक्षा हो और सरकार ने जिनके कांधों पर ये ज़िम्मेदारी सौंपी है वे अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित हों !

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