ढोलक की थाफ व झिका के बीच हुई फ़ाग ,फ़ाग का गायन वेदिक संस्कृति का प्रतीक है

रिपोर्टर सुवीर कुमार त्रिपाठी
शहरों में भले ही अधुनिकता के चलते भले ही फागें बंद होगयी हैं किंतु ग्रामीण अंचलों में आज भी यह वैदिक संस्कृति की परंपरा जारी है होली जलने के दूसरे दिन से यह परंपरा बड़े ही चाव से गाई जाती है ।
अवध में होली खीले रघुबीरा ,उद्धव सब कारे आजमाए ,
मत मारो दृगन की चोट रसिया ,
को खोले फागुन में होली पिया बिन,
नेक ठाड़े रहियो श्याम संग रंग डारे ,,, जैसे वीर ,ओज ,वात्सल्य ,प्रेम से ओत प्ररोत , फगुआ समरस्ता के साथ गायन करते हैं, अंजू शर्मा ,बदन सिंह अमर सिंह ,आदि फगुआ फ़ाग गाते हैं ।यह फ़ाग गांव हैदरपुर में बड़े ही हर्ष व सौहार्द के साथ गाई जाती हैं । प0 प्रमोद पांडेय बताते हैं होली पर फ़ाग होना हमारी बेदिक संस्कृति व सनातनी परम्परा का प्रतीक है । इससे भाई चारा कायम रहता है । इसमे बच्चे व युवा बड़े बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं
शहरों में अब डीजे की धुनों पर थिरकते नजर आते हैं ।