समीक्षा • इतिहास वेत्ता रामधनी द्विवेदी ने लिखी, इतिहास और पुरातात्विक स्थलों को संजोए हुए है यह पुस्तक ‘सांची दानं’ इतिहास और संस्कृति का एक अनूठा संगम

रिपोर्टर विशाल शर्मा
किसी भी पुस्तक को लिखने से पहले, विषय वस्तु की अच्छी परख और जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। ब्राह्मी लिपि में लिखी गई इस पुस्तक के लेखक ने पहले ब्राह्मी लिपि को पढ़ना सीखा, फिर उसे लिखना सीखा और बाद में अपने अध्ययन को विस्तारित करते हुए उसे एक पुस्तक का रूप दिया, जिसका नाम रखा गया ‘सांची दानं’। यह पुस्तक न केवल इतिहास को संजोए हुए है, बल्कि पुरातात्विक धरोहर की अमर गाथा के साथ-साथ भारतीय इतिहास और महापुरुषों से जुड़े जीवन के कई
महत्वपूर्ण पहलुओं को भी दर्शाती है। इस पुस्तक की समीक्षा प्रसिद्ध
इतिहासकार रामधनी द्विवेदी ने लिखी है। साहित्यकार मोतीलाल आलमचंद द्वारा इस पुस्तक का सृजन किया गया, जो न केवल प्रशासनिक अधिकारी हैं, बल्कि अपनी अध्ययनशीलता और रचनात्मकता के कारण साहित्य में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनकी रचनाओं ने साहित्य जगत में बड़ी इबारत दर्ज की है।
समीक्षा में उन्होंने लिखा कि लेखक को शब्दों को पढ़ने में रुचि लगी, जिससे उनकी इच्छा और बढ़ी। पहले तो उन्होंने सामान्य सी पुस्तकें पढ़ीं, फिर और भी पुस्तकें मंगवाई। चूंकि लेखक ने प्राचीन इतिहास और संस्कृति में एमए किया है और अभिलेख तथा मूर्ति विज्ञान पर भी
एक पेपर किया था, इसलिए उनका बैकग्राउंड समझने में उन्हें मदद मिली। लेखक का इरादा तो मूर्तियों पर रिसर्च करने का था, लेकिन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरातत्व शास्त्री प्रो. वीडी मिश्र ने सलाह दी कि इस विषय में फील्डवर्क बहुत ज्यादा है और आप नौकरी भी कर रहे हैं, इसलिए यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है। इसके बजाय, उन्होंने लेखक को लाइब्रेरी से जुड़ा शोध करने का सुझाव दिया और इस प्रकार लेखक को विष्णु पुराण के सांस्कृतिक अध्ययन पर काम करने का अवसर मिला। उन्होंने और किताबें मंगवाईं और गहन अध्ययन शुरू किया, लेकिन प्राकृत शब्दों के अर्थ समझने में मुश्किल आई
सांची के अभिलेखों पर मोतीलाल आलमचंद का गहन शोध और इतिहास में नए दृष्टिकोण
जेम्स प्रिंसेप ने सांची के अभिलेखों में ‘दानं’ शब्द पकड़कर ब्राह्मी लिपि के अक्षरों को पढ़ने में सफलता पाई थी, जिससे उनका उत्साह बढ़ा। मोतीलाल आलमचंद, जो मध्यप्रदेश सरकार में अधिकारी हैं, ने इस विषय पर अपनी पुस्तक ‘सांची दानं’ का तीसरा संस्करण प्रकाशित किया है। लेखक से बातचीत में जब पूछा गया कि क्या कोई पुस्तक है जिसमें सम्राट अशोक के सभी अभिलेखों के हिंदी और प्राकृत अर्थ दिए गए हों, तो उन्होंने बताया कि उन्होंने एक
प्राकृत-हिंदी शब्दकोश तैयार किया है, जो अशोक के अभिलेखों में अंकित शब्दों के अर्थ प्रदान करता है। इस पुस्तक की छपाई आकर्षक और साफ है, जिसमें ग्लेज पेपर और रंगीन छायाचित्रों का उपयोग किया गया है। मोतीलाल आलमचंद की विशेषता यह है कि उन्होंने ब्राह्मी लिपि को कंप्यूटर पर टाइप किया है, जो अद्भुत है। इस पुस्तक में उन्होंने कई नई और तार्किक स्थापनाएं की हैं, जो इतिहास में स्थापित तथ्यों को संशोधित करती हैं।