रानी कैकेई ने राजा दशरथ से मांगा राम को वनवास और भरत के लिए राजसिंहासन

रिपोर्ट/अनुराग तिवारी
रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाई।
गत दिवस पूर्ण धाम भैंसदेही नगरी में नवयुवक दुर्गा रामलीला मंडल के सौजन्य से रामलीला संस्कृति जन जागरण मंडल प्रयागराज उत्तर प्रदेश के संचालक पंडित वीरेंद्र दुबे के द्वारा रामचरित्र मानस का सरकार प्रदर्शन रामलीला का मंजन गांधीधाम बाजार चौक स्थित रामलीला के मंच पर किया जा रहा है आज राम बनवास का प्रसंग था जिसमें राजा दशरथ ने अपने कुलगुरु वशिष्ठ जी के आशीष एवं मार्गदर्शन से अपने राज दरबार में राम के राज्याभिषेक की घोषणा की यह सूचना देवताओं को भी मिली तब देवताओं ने मां शारदा से प्रार्थना की ॥विपत्ति हमारी बिलोंकी बड़ी ,मातु करअ सोई आज। रामू जहिं राज तजि, होई सकल सुर आज। ॥तब मां ने देवताओं की विनती को सुनकर अयोध्या नगरी में पदार्पण किया वहां उन्होंने देखा कि इस कार्य में कौन सहयोग देगा सारा नगर तो रामचंद्र जी को राजा बनना चाहता है ,किंतु एक नामु मंथरा मंदमति ,चेरी कैकेई केरि ।। अजस पेटारी ताहि करी, गई गिरा मति फेरी ।।उसे कुटिल मंदमति मंथरा की बुध्दि मां शारदा ने फेर दी ,और वह महारानी कैकई के महल में प्रवेश करती है और राम जी के राजा बनने का समाचार देती है, जिस पर कैकई बहुत प्रसन्न होती है रहती है यह तो बड़ा शुभ समाचार है क्या रामराज तिलक के योग्य नहीं मंथरा ने कहा योग्य तो भारत जी भी है, किंतु वह छोटे हैं, मंथरा छोटे नहीं अप्रिय है महारानी जी तब कैकई क्रोध से भरकर चल निकल यहां से चंडलिनी किसने माति तेरी मारी है, जो स्वच्छ रूई की ढेरी, मे तू बनकर आई चिंगारी है।। तब मंथरा ने रोते हुए कहा महारानी जी मैं सब कुछ आपकी भलाई के लिए कह रही हूं ,परंतु आप समझती नहीं क्या आप मेरी तरह दासी बन कर रहना चाहती हो ,सौत चाहे मिट्टी की ही हो फिर भी जहरीली नागिन होती है, अपने पुत्र राम को अधिक सम्मान दिलाना इसमें भी कौशल्या की चाल है ,वह जानती है कि भारत राज सिंहासन का अधिकारी है इसीलिए तुम्हारे दिल में राम के प्रति मोह पैदा कर दिया है, ताकि मोह वश ,ओ तुम्हारी जुबान पर ताला पड़ा रहे यदि तुम इस रण में हार गई तो भारत रहेगा दासों में, रखेगी तुमको कौशल्या, दासी समान रनिवासो में ।।धिक्कार ऐसे जीवन पर क्यों पड़ा समझ पर पत्थर है ,अधिकार नहीं सम्मान नहीं तो मेरा मर जाना ही बेहतर है ।।रानी कैकेई तूने उल्टी सीधी बातों से मेरे हृदय में हलचल सी मचा दी है मैं जिसे सूर्य की उपमा देती हूं ,तो उस पर ही धूल उड़ती है यह सब क्या है इस तरह रानी कैकेई को भड़काकर की आज जिस राम को आप अपना समझती है, वह कल पराया भी हो सकता है हृदय से वहम निकाल दीजिए, तब कैकई कहती है ,अब मैं क्या करूं मंथरा समय की प्रतीक्षा इसके लिए साधन की जरूरत है ,ठीक है ,आप भी अयोध्या नरेश से अपने बच्चों की पूर्ति कर लीजिए।आपको तो याद ही है महारानी याद तुम्हें रानी जूं दो वर राजा पर बाकी है, घर का युद्ध जीतने को बस तीर दो काफी है।। तब कैकई ने मंथरा
के सुझाव पर क्रोध में का मंथर कदापि नहीं, होगी कौशल्या की मनमानीअब,।। युवराज बनेगा भारत लाल मैंने
भी हठ यह ठानी अब।।
महारानी कैकई अब कोप भवन में पहुंच गई ,जहां उसके आभूषण बिखरे पड़े हैं इस बात का पता जैसे ही महाराज दशरथ को हुआ वे रानी के महल में पहुंचे अनेक तरह से राजा दशरथ ने रानी कैकई को मनाने का प्रयास किया किंतु वह अपनी बात से जरा भी नहीं हटी और अंत में राजा दशरथ को दो वरदान की याद दिला दी ।आज समय आ गया है उसका वे दोनों वरदान मुझे दो, इस हलचल के बीच कहीं खोया है सम्मान मुझे दो ,दशरथ अरे रानी बस यही इस पर ही यह सवांग
इतनी लंबी भूमिका और जरा सी मांग, कैकेई तब मैं अपने वचनों को मांग लूं ना दशरथ मांग ना महारानी वह तो तुम्हारा अधिकार है ,तब कैकई तो सुनो प्राण पति प्राणनाथ वह पहला वर आज मांगती हूं कौशल्या नंदन के बदले निज सूत को राज मांगती हूं, दशरथ यह तुमने क्या कह दिया, महारानी संसार तुम्हें क्या कहेगा, परंतु माता कुमाता नहीं हो सकती, कैकई संसार मुझे केवल भरत के लिए मैं वही कर रही हूं जो एक मां के लिए उचित है। और दूसरा बर जो कि दूसरा है मेरा ,तो सुनो कंपित मत होना, क्षतरी नरेश कहलाते हो, सत से विचलित मत होना ।।राजा जो राम हो रहा है वह राजा नहीं उदासी हो ।कल ही से 14 वर्षों को तपस्वी बनाकर वनवासी हो।। दशरथ ओ दूध पीकर जहर उगलने वाली नागिन, राम ने तेरा तेरा क्या बिगाड़ा हरि पापीनि मेरे प्राण मांग ले , किंतु ऐसा अन्याय न कर ,आज तूने मेरा हृदय क्या कर राम की मूरत निकालने की कोशिश की है काश तुझे मेरे हृदय चीर कर राम की मूरत निकालने की कोशिश की है।काश तुझे मेरे हृदय की तड़प मालूम होती। रानी सूर्यवंश के इतिहास पर नजर डालो रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाई।। कैकई मुझे वर चाहिए ,ओ अत्याचारिन कैकई, महाराज मजबूर किसने किया है, इंकार ही कर दीजिए, झूठ के बल से राजतिलक हो जाएगा ।।आपकी चाहेती , और प्रसन्न जगत हो जाएगा।।
तब दशरथ बोल बेटे प्यार दूर होगा, दशरथ इस समय धर्म पर है, हो मोह पलायन हो तुरंत, मेरा उत्थान कर्म पर है ।।रानी रानी क्या कहती है ,मुझको अभियान धर्म पर है मैं क्या तू क्या संताने क्या सब कुछ बलिदान धर्म पर है।। लड़खड़ाते हुए राजा दशरथ गिर पड़े, बेटा राम राम कहकर बेहोश हो जाते हैं। राज्य के मंत्री सुमंत आश्चर्यचकित थे ब्रह्म बेला में राजा से मिलने आते हैं राजा की राज दरबार में न पहुंचना शंका को उत्पन्न करता है तब कैकई मंत्री जी को केवल इतना कहती है कि महाराज को रात भर नींद नहीं आई इन्होंने राम-राम कहकर सवेरा कर दिया, परंतु इसका भेद कुछ भी नहीं बतलाते तुम जल्दी से राम को बुला लो तब सुमंत राम को बुलाते हैं। कैकई राम से कहती हैं बेटा तुम्हें रघुकुल की आन को निभाना होगा राम मगर पिताजी कैकई महाराज ने देवासुर संग्राम में दो बर देने का वचन दिया था, जिन्हें आज पूरा करने में महाराज घबराते हैं ,बेटा तुम्हें राजगद्दी छोड़कर वन में जाना होगा।। राम अहो भाग्य रामप्रण को निभाऐ सुख दुख में धर्म से गिरने ना पाए।। कैकई राम को छाती से लगाकर इस समय मैं तुम्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम की पदवी देतु हूं माता के आशीष को कोई मिटा सकता नहीं।। नाम तेरा जगत से कोई हटा सकता नही।। इस तरह राम वनवास का यह प्रसंग जो करुण रस से सराबोर था जिसे देखकर दर्शक और श्रोता मंत्र मुग्ध हो गऐ।इस सुंदर प्रसंग की प्रस्तुति में रामायण वाचक व्यास श्री वीरेन्द्र दुबे के मार्गदर्शन में दशरथ का प्रभावशाली अभिनय राजन तिवारी ने किया,वहीं कैकई की भूमिका में दिनेश शुक्ल ने सुंदर प्रस्तुति दी ,इसी तरह मंथरा मनीष दुबे बने, वहीं मर्यादा पुरुषोत्तम राम की अतुल शुक्ल तथा लक्ष्मण की भुमिका प्रवीण तिवारी ने निभाई। उपरोक्त रामलीला के मंचन में नवयुवक दुर्गा रामलीला मंडल के संचालक पंडित श्यामनारायण तिवारी , पूर्व प्राध्यापक प्रकाश चन्द्र आमलेकर, रामदयाल राठौर, अध्यक्ष संजय तिवारी, उपाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण मालवीय,सुनिल गुरव, सचिव नरेंद्र सोनी, महेंद्र राठौर, बंटी राठौ,र मारुति मोहरे, सहित अनेक रामलीला के रसिक श्रोता और दर्शन देर रात तक उपस्थित थे।