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छत्तीसगढ़ की संस्कृति परंपरा है छेरछेरा पुन्नी ,महेंद्र मोनू साहू

 

रिपोर्ट ।पनमेश्वर साहू

पलारी । धान का कटोरा के नाम से मशहूर छत्तीसगढ़ में प्रमुख फसल धान के पकने और कोठी (धान रखने का स्थान) में रखने के बाद उसमें से कुछ हिस्सा दान में देने की प्राचीन परंपरा रही है। ऐसी मान्यता है कि अनाज का दान देने से घर की रसोई में कभी अनाज की कमी नहीं होती। प्राचीन समय में रुपए-पैसे का दान नहीं दिया जाता था बल्कि धान का ही दान किया जाता था। जो भी मांगने आता था वह धान भेंट में लेकर ‘कोठार भरा-पूरा रहे’ का आशीर्वाद देकर जाता था। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में आज भी साल में एक खास दिवस ‘छेरछेरा पर्व’ पर धान का दान मांगने और यथाशक्ति धान का दान देने की परंपरा का पालन किया जाता है। प्रदेश भाजपा ओबीसी मोर्चा सदस्य महेंद्र मोनू साहू ने प्रदेश वासियों को छेरछेरा पुन्नी की दी बधाई

पौष पूर्णिमा को मनाएंगे ‘छेरछेरा पर्व’

छत्तीसगढ़ी परंपरा में पौष मास की पूर्णिमा तिथि को ‘छेरछेरा’ पर्व मनाया जाता है। इस बार पूर्णिमा तिथि 25 जनवरी को पड़ रही है। इसी दिन ग्रामीण इलाकों में दान मांगने की परंपरा निभाई जाएगी।

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