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सियासत नामा : महासमुंद लोकसभा क्षेत्र  क्षेत्रीय क्षत्रपों के बगावती तेवर के चलते  धराशायी हुए थे दो दिग्गज

 

रिपोर्ट डेकेश्वर (डीके) ठाकुर

गरियाबंद (रजिम) । आसन्न लोकसभाई चुनाव को लेकर प्रदेश के साथ जिले में भी चुनावी चर्चाएं – यादें एक बार फिर ताजी होने लगी हैं कभी भारतीय राजनीति के दिग्गज नेता पं.विद्याचरण शुक्ल, अजीत जोगी,संत – कवि पवन दीवान, पं. श्यामाचरण शुक्ल की सियासी रणभूमि के रूप में चर्चित हाईप्रोफाइल संसदीय क्षेत्र महासमुंद के किस्से चुनाव के साथ लोगों की ज़ुबां पर आ ही जाते जिसमें 2004 और 2014 के संसदीय चुनाव के किस्से उल्लेखनीय होते हैं। जिसमें क्षेत्रीय राजनीति के क्षत्रपों के रुप में जाने जाने वाले कर्मठ जनसंघी नेता पूर्व विधायक राजिम स्व.पुनित राम साहू व जिले के आदिवासी समुदाय में तगड़ी पैठ रखने के साथ राजपरिवार से संबंधित विंद्रानवागढ़ क्षेत्र के पूर्व विधायक कुमार ओंकार शाह के बगावती तेवरों के चलते महासमुंद से छै: बार सांसद और गांधी परिवार के संजय गांधी के बेहद करीब रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री पं.विद्याचरण शुक्ल के साथ ही छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी को पराजय झेलनी पड़ी थी ।

2004 में पुनित राम ने की खुली बगावत

निपटे थे विद्याचरण…

महासमुंद संसदीय क्षेत्र से अपने सियासी सफर शुरू करने वाले विद्याचरण शुक्ल नौ बार सांसद चुने गये इनमें से छै: बार महासमुंद से ही चुने गये एक समय ऐसा भी रहा जब संसदीय सीट महासमुंद और विद्याचरण शुक्ल एक दूसरे के पूरक माने जाते थे ।01 नवंबर 2000 जब छत्तीसगढ़ पृथक राज्य के रूप में अस्तित्व में आया वे कांग्रेस आलाकमान के समक्ष मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी पेश की थी जिसे दरकिनार कर अजीत जोगी को सूबे का मुख्यमंत्री घोषित किया गया और इसके बाद से ही आलाकमान व शुक्ल के मध्य दूरियां बढ़ती गई फिर उन्होंने कांग्रेस छोड़ शरद पवार की नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का दामन थाम छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2003 में अपने प्रत्याशी उतारे हालाकि उनके नेतृत्व में लड़े गये चुनाव एनसीपी कुछ खास करामत नहीं दिखा पायी अलबत्ता कांग्रेस का वोट काट कर अपने चिरपरिचित सियासी प्रतिद्वंदी अजीत जोगी को सूबे की सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने में जरूर कामयाब रही।2004 के देश के आम चुनाव के पूर्व शुक्ला ने एनसीपी छोड़ भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ले ली पूर्व प्रधानमंत्री स्व.अटल बिहारी से मधुर संबंधों के भरोसे उन्हें अपनी परंपरागत सीट महासमुंद की टिकट लेने में कोई दिक्क़त नहीं हुई लेकिन उनके सीधे दिल्ली से टिकट लाते ही महासमुंद संसदीय सीट के भाजपाईयों में हाहाकार मच गया विरोध के स्वर उठने लगे इधर कांग्रेस की टिकट अजीत जोगी ने अपने नाम से ला चुनावी दंगल को रोचक बना दिया । जोगी को टिकट दिये जाने के विरोध में अन्य दावेदार पूर्व सांसद संत पवन दीवान ने पार्टी छोड़ने का ऐलान करते हुए भाजपा प्रवेश कर लिया तो वही दूसरी ओर आपातकाल के हीरो के रूप में चर्चित पंडित शुक्ल को भाजपा की टिकट दिये जाने के खिलाफ राजिम क्षेत्र के पूर्व विधायक, पुराने कर्मठ जनसंघी नेता खुली बगावत कर कांग्रेस प्रत्याशी अजीत जोगी के पक्ष में खुलेआम सघन प्रचार किये जाने का असर समूचे लोकसभा क्षेत्र पर पड़ा आपातकाल पीड़ित, पुराने जनसंघी नेताओं ने विद्याचरण शुक्ल के खिलाफ माहौल तैयार करने में कोई कोर कसर नहीं रख छोड़ी परिणाम स्वरूप भारतीय राजनीति के के धूमकेतु कहे जाने वाले विद्याचरण शुक्ल को दशकों पुरानी अपनी परंपरागत सीट पर प्रतिष्ठा पूर्ण मुकाबले में अजीत जोगी के हाथो 1,18,505 मतो के विशाल अंतर से पराजित होना पड़ा था।इस चुनाव में जोगी छत्तीसगढ़ से इकलौते सांसद चुने गये और टिकट वितरण में अपनी एक गलती के चलते भारतीय जनता पार्टी सूबे में क्लीन स्वीप करते – करते चूक गई ।

ओंकार शाह दरकिनार करना महंगा पड़ा –

2014 की जीती बाजी हार गयें जोगी…

2004 जैसी कमोबेश स्थिति 2014 के संसदीय चुनाव में भी रही छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2013 के चुनाव में जिले के विंद्रानवागढ़ विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक रहे कुमार ओंकार शाह की टिकट काटने ,की कीमत अजीत जोगी को चुकानी पड़ी नाराजगी वश शाह ने 2014 के संसदीय चुनाव से स्वयं को दूर रखा तो वही उनके समर्थकों व सामाजिक जनों ने सीधे भाजपा के पक्ष में वोटिंग की जिसके चलते जोगी विंद्रानवागढ़ विधानसभा क्षेत्र से आशातीत, अपेक्षित मत नहीं जुटा पाने के कारण अपनी जीती बाजी भाजपा प्रत्याशी चंदूलाल साहू के मुकाबले महज 1217 मतो के अल्पांतर से हार गये । इस पराजय ने जोगी के के ‘सियासी जीवन को पराभव के दौर में ढ़केल दिया।कांग्रेस आलाकमान के साथ छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी में उनकी दखल कम होते गई।

महासमुंद हाईप्रोफाइल संसदीय क्षेत्र के साथ दोनों ही हाईप्रोफाइल नेताओं को लेकर अजीब सा सहयोग रहा दोनों ही दिग्गज नेताओं के राजनीतिक दिशा – दशा बदलने में जिले के ही दो जनाधार वाले जमीनीं नेताओं की अहम भूमिका रही चुनावों के दौरान जनता ने मुँह मोडा़ तो मोड़ा ,अन्यन्य समर्थक भी धीरे-धीरे छिटकने लगे जोगी ने अपने सियासी वजूद बचाने जून2016 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) नाम से नई पार्टी बना अपने निधन के पूर्व वर्षों तक मरवाही विधायक के रूप में जद्दोजहद जारी रख मई 2020 में अपन सियासी सफर को विराम दिया तो वहीं पं. शुक्ल ने एक बार फिर कांग्रेस पार्टी की ओर रुखकर अपने कद के अनुरूप कांग्रेस में जगह बनाने के कवायद शुरु कर दिये इसी दरमियान मई 2013 कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले में वे बुरी ,तरह घायल हो गये और लंबे इलाज के दौरान वे जून 2013 शहादत को प्राप्त कर गये। इस तरह दोनों ही दिग्गजों ने महासमुंद संसदीय क्षेत्र में अपनी पुनर्वापसी की संभावनाओं पर हमेशा के लिए पूर्ण विराम लगा दिऐ ।

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