केंद्र के 5 साल वाले एमएसपी प्लान पर क्यों राजी नहीं हुए किसान, समझिए सरकार की चुनौतियां क्या
रिपोर्टर-महेंद्र सिंह लहरिया
नई दिल्ली: हफ्तेभर से प्रदर्शन कर रहे किसानों और केंद्र सरकार के बीच रविवार को चंडीगढ़ में चौथे दौर की बातचीत हुई। इस बैठक में केंद्र सरकार ने किसानों के सामने एमएसपी को कुछ फसलों पर रियायत का विचार दिया। सरकार ने दाल, मक्का और कपास की खरीद पर पांच साल के अनुबंध का प्रस्ताव रखासरकार के इस प्रस्ताव को किसानों ने ठुकरा दिया। किसानों अभी भी सभी फसलों पर एमएसपी गारंटी को लेकर अड़े हुए हैं। इसके साथ ही किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने सरकार को किसानों की मांगे मानने के लिए 21 फरवरी तक का अल्टीमेटम दिया है। किसान दिल्ली कूच को लेकर तैयार हैं। ऐसे में अब सरकार के सामने चुनौतियां और बढ़ गई हैं। किसान आंदोलन की अगली दिशा क्या होगी? और सरकार के सामने क्या चुनौतियां हैं? आइए समझते हैं।
कल की बैठक में क्या हुआ?
चंडीगढ़ में किसानों और सरकार के बीच हुई बैठक में सरकार ने कुछ फसलों पर एमएसपी को लेकर सहमति जताई। इसमें मक्का, दालें और कपास की खेती शामिल है। बातचीत में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल सहित तीन केंद्रीय मंत्री सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। लेकिन इस बैठक के कोई खास परिणाम निकलते नहीं दिख रहे हैं। किसान नेताओं का कहना है कि सरकार को सिर्फ दाल या मक्का पर नहीं, बल्कि सभी 23 फसलों पर गारंटी देनी चाहिए। पंजाब के किसानों का कहना है कि उनके लिए इस प्रस्ताव से कोई खास लाभ नहीं है, क्योंकि वहां दाल और मक्का की खेती कम ही होती है। उन्होंने कहा, इस अधूरे प्रस्ताव से पंजाब, हरियाणा के किसानों को कोई फायदा नहीं है।
दाल-मक्का पर हुए समझौते की खास बातें
एनसीसीएफ और नाफेड जैसे सहकारी समितियां दाल और मक्का खरीदने के लिए पांच साल का करार करेंगी। ये भारत सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हैं।
इन फसलों को एमएसपी पर खरीदा जाएगा। खरीद की कोई सीमा नहीं होगी और इसे ट्रैक करने के लिए एक वेबसाइट बनाई जाएगी।
यह समझौता केवल दाल और मक्का पर है, अन्य 22 फसलों को लेकर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।
कुछ किसान संगठन केवल दो फसलों पर समझौते से खुश नहीं हैं और सभी फसलों के लिए एमएसपी की गारंटी की मांग कर रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि यह समझौता मक्का उत्पादन को बढ़ाने की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य अनाज से इथेनॉल बनाने के लिए कच्चा माल तैयार करना है। उन्होंने बताया कि इससे पंजाब के कृषि क्षेत्र को फायदा होगा, भूजल स्तर में सुधार होगा और जमीन बंजर होने से बचेगी। सरकार फसल विविधीकरण को बढ़ावा दे रही है, इसलिए मक्का के लिए एमएसपी पिछले साल ₹1,760 से बढ़ाकर ₹2,090 प्रति क्विंटल कर दिया गया था। भूजल को लेकर पहले भी चिंताएं जताई गई थीं। पिछले साल नवंबर में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को मक्का की ओर रुख करने सहित उपाय करने की चेतावनी दी थी। यह चेतावनी दिल्ली क्षेत्र में वायु प्रदूषण को कम करने के संदर्भ में दी गई थी, जो मुख्य रूप से पराली जलाने के कारण होता है।
फिलहाल एमएसपी योजना क्या है?
फिलहाल सरकार रागी, मूंगफली, सोयाबीन, सूरजमुखी के बीज, जौ, रेपसीड और सरसों सहित 23 फसलों के लिए एमएसपी पर खरीद करती है। सरकार हर साल खरीफ फसलों के लिए जून में एमएसपी घोषित करती है। यह न्यूनतम मूल्य उत्पादन लागत से कम से कम 1.5 गुना अधिक होता है। इसका उद्देश्य किसानों को उचित दाम दिलाना और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना है।
क्या है किसानों की मांगें?
*एमएसपी पर कानूनी मान्यता:* किसानों की पहली और सबसे जरूरी मांग ये है कि सरकार एमएसपी को लेकर कानून बनाए, ताकि किसानों की फसल का उचित दाम मिल सके।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना: किसानों की दूसरी मांग स्वामीनाथन आयोग कि सिफारिशों को लागू करना है। इस रिपोर्ट में एमएसपी कुल लागत मूल्य से कम से कम 50% अधिक रखने की सिफारिश की थी। इसे सी2+50 फॉर्मूला कहा जाता है। किसान चाहते हैं कि सरकार इसे लागू करे।
किसानों के लिए पेंशन: किसानों की तीसरी मांग किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए पेंशन है। किसानों की लंबे समय से मांग है कि उन्हें और खेतिहर मजदूरों को भी बुढ़ापे में पेंशन मिले।
इन मांगो के अलावा किसानों की कुछ और मांगे भी हैं। किसान कर्ज माफी, बिजली दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं, पिछले विरोध प्रदर्शनों के दौरान दर्ज पुलिस मामलों को वापस लेने, उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों के लिए न्याय, भूमि अधिग्रहण अधिनियम को बहाल करने और विरोध प्रदर्शनों के दौरान मरने वालों के परिवारों के लिए मुआवजे की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी किसान फिलहाल पंजाब और हरियाणा के बीच शंभू बॉर्डर से लगभग 200 किमी दूर दिल्ली से डेरा डाले हुए हैं।
सरकार के सामने क्या है चुनौती?
किसानों का आंदोलन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हो रहा है। सरकार अब तक चार दौर की बातचीत में किसानों को आश्वासन दे चुकी है, लेकिन इसका कोई खास नतीजा नहीं निकला। सरकार के सामने भी कुछ चुनौतियां हैं
अब संसद सत्र बुलाना मु्श्किल:किसानों का आंदोलन बजट सत्र के बाद शुरू हुआ है, जो कि इस सरकार का आखिरी संसद सत्र था। करीब दो हफ्ते में चुनाव आयोग लोकसभा चुनावों का ऐलान कर देगा, ऐसे में अगर सरकार किसानों की बात मान भी लेती है, तो भी वो कानून कैसे बनाएगी, क्योंकि इसके लिए संसद सत्र बुलाना पड़ेगा।
एमएसपी पर कानून बनाना मुश्किल: दूसरा सभी फसलों पर एमएसपी देना सरकार के लिए मुश्किल है। अगर सरकार ऐसा करती है, तो एक अनुमान के अनुसार इस पर 10 लाख करोड़ रुपये का खर्च आएगा। सरकार ने अंतरिम बडट में पूंजीगत निवेश पर 11.11 लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा है। अगर सभी फसलें एमएसपी पर खरीदी जाएंगी तो कर्मचारियों को वेतन और पेंशन कहां से देगी। इससे वित्तीय संकट पैदा हो सकता है।
लंबा चल सकता है किसानों का आंदोलन
किसानों ने 21 फरवरी तक का अल्टीमेटम सरकार को दिया है। किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि सरकार के पास 21 फरवरी तक का समय है। सरकार को सोचना और समझना चाहिए कि ये दो चीजें (तिलहन और बाजरा) (खरीद के लिए) बहुत महत्वपूर्ण हैं। जैसे उन्होंने दालों, मक्का और कपास का उल्लेख किया, उन्हें इन दोनों फसलों को भी शामिल करना चाहिए। अगर इन दोनों को शामिल नहीं किया गया तो हमें इस बारे में फिर से सोचना होगा…कल हमने फैसला लिया कि अगर 21 फरवरी तक सरकार नहीं मानी तो हरियाणा भी आंदोलन में शामिल होगा। इसके अलावा हाल ही में संयुक्त किसान मोर्चा ने भी इस आंदोलन को समर्थन देने की बात कही। किसान नेता राकेश टिकैट ने साफ तौर पर कहा था ये आंदोलन अभी लंबा चलेगा।
किसान आंदोलन : देश में तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के करीब तीन साल बाद एक बार फिर से यूपी से लेकर पंजाब-हरियाणा के किसानों ने ’13 फरवरी को ‘दिल्ली चलो’ का नारा बुलंद किया है। संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के संबंध में कानून बनाने समेत विभिन्न मांगों को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव डालने के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना देने का ऐलान किया है।
200 किसान यूनियन का समर्थन
इस आंदोलन को देश के 200 से अधिक किसान यूनियनों का समर्थन हासिल है। किसान एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी के अलावा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने, किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए पेंशन, कृषि ऋण माफी, पुलिस मामलों को वापस लेने और लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों के लिए ‘न्याय’ की भी मांग कर रहे हैं। यह उन शर्तों में से एक है जो किसानों ने तब निर्धारित की थी जब वे 2021 में कृषि कानूनों के खिलाफ अपना आंदोलन वापस लेने पर सहमत हुए थे।
किसान आंदोलन के कारण दिल्ली में धारा 144 लागू
किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद आखिरकार इन कानूनों को निरस्त कर दिया गया था। किसानों के फिर से प्रदर्शन को देखते हुए केंद्र ने किसान यूनियनों की मांगों पर चर्चा के लिए 12 फरवरी को उन्हें एक और बैठक के लिए आमंत्रित किया है। दूसरी ओर प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में प्रवेश करने से रोकने के लिए सीमाओं को अवरुद्ध करने के कदम उठा रही है। साथ ही राजधानी में धारा 144 लागू कर दिया गया है। हरियाणा और दिल्ली में कई स्थानों पर कंक्रीट के बैरिकेड, सड़क पर बिछने वाले नुकीले अवरोधक और कंटीले तार लगाकर पड़ोसी राज्यों से लगी सीमाओं को किले में तब्दील कर दिया गया है। इसके अलावा निषेधाज्ञा लागू की गई है और हजारों पुलिसकर्मियों को तैनात किया जा चुका है।
प्रदर्शनकारी किसानों से बातचीत को तैयार सरकार
हरियाणा सरकार ने शांति भंग होने की आशंका के चलते 11 से 13 फरवरी तक सात जिलों – अंबाला, कुरूक्षेत्र, कैथल, जींद, हिसार, फतेहाबाद और सिरसा में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं और एक साथ कई एसएमएस (संदेश) भेजने पर रोक लगा दी है। तीन केंद्रीय मंत्री – पीयूष गोयल, अर्जुन मुंडा और नित्यानंद राय – संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा के प्रतिनिधिमंडल के साथ बातचीत करने के लिए 12 फरवरी को चंडीगढ़ पहुंचेंगे। राजधानी के उत्तर-पूर्वी जिले में धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू कर दी गई है। इसमें पुलिस को प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में प्रवेश करने से रोकने के लिए सभी प्रयास करने का निर्देश दिया गया। 2020-21 के किसानों के आंदोलन स्थलों में से एक, गाजीपुर बॉर्डर पर भी अवरोधक लगाए गए हैं और पुलिस की जांच तेज कर दी गई है।
इतिहास में हुए किसान आंदोलनों पर एक नजर
देश में 1858 से 1914 के बीच आंदोलन स्थानीय स्तर पर सीमित रहे, जिनका मुख्य कारण किसानों पर अत्याचार, भारतीय उद्योगों पर ब्रिटिश नीतियों का दुष्प्रभाव और अन्यायपूर्ण आर्थिक नीतियां थीं। किसानों को मनमाना लगान, अवैध टैक्स और बंधुआ मजदूरी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। इसके विरोध में किसानों ने वक्त-वक्त पर आंदोलन किए। इसी क्रम में 1920 से 1940 के बीच कई किसान संगठनों की स्थापना हुई, जिनमें बिहार प्रांतीय किसान सभा और अखिल भारतीय किसान सभा प्रमुख थे। इन संगठनों ने जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई।
*1858 से 1947 के बीच भारत में किसान आंदोलन*
1858 और 1947 के बीच भारत में किसान आंदोलनों ने कई चरणों में विकास किया। 1914 से पहले ये आंदोलन लोकलाइज्ड, असंबद्ध और विशेष शिकायतों तक सीमित थे। 1914 के बाद गांधीजी के नेतृत्व में आंदोलन राष्ट्रवादी चरण में प्रवेश कर गए।
1914 से पहले के आंदोलन:
नील विद्रोह (1859-62): बंगाल में नील की खेती करने वाले किसानों ने यूरोपीय बागान मालिकों के शोषण के खिलाफ विद्रोह किया।
पाबना आंदोलन (1870-80): पूर्वी बंगाल में जमींदारों ने लगान और टैक्स बढ़ाए तो किसानों ने आंदोलन किया।
दक्कन विद्रोह (1875): दक्कन के किसानों ने मारवाड़ी और गुजराती साहूकारों के शोषण के खिलाफ विद्रोह किया।
1914 के बाद के आंदोलन:
चंपारण सत्याग्रह (1917): बिहार के चंपारण में नील की खेती करने वाले किसानों ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में जमींदारों के शोषण के खिलाफ आंदोलन किया।
खेड़ा सत्याग्रह (1918): गुजरात के खेड़ा में किसानों ने सूखे के बावजूद भू-राजस्व माफ करने से सरकार के इनकार के खिलाफ आंदोलन किया।
बारदोली सत्याग्रह (1928): गुजरात के बारदोली में किसानों ने लैंड रेवेन्यू बढ़ाने के खिलाफ सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में आंदोलन।
किसान आंदोलन से जुड़े सवालों के जवाब
1. किसान फिर क्यों दिल्ली में प्रदर्शन करने आ रहे हैं?
किसान अपनी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने वाला कानून बनाने की मांग को लेकर 13 फरवरी को ‘दिल्ली चलो’ मार्च के आह्वान पर आ रहे हैं।
2. दिल्ली में कहां-कहां से किसान विरोध-प्रदर्शन में हिस्सा लेंगे?
‘दिल्ली चलो’ मार्च में हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और अन्य संभावित क्षेत्रों से भी किसानों के दिल्ली पहुंचने की उम्मीद है।
3. कहां-कहां रूट हुआ है डायवर्ट
पंजाब- हरियाणा से किसानों के 13 फरवरी के दिल्ली कूच के ऐलान के बाद रविवार को पुलिस ने दिल्ली-चंडीगढ़ हाइवे का रूट डायवर्ट कर दिया है। अंबाला और पंजाब की तरफ से आने वाले रास्तों पर ट्रैफिक बंद रहेगा। दिल्ली से चंडीगढ़ जाना चाहते हैं तो अलग रूट तैयार किया गया है। अगर अमृतसर जाना है या फिर चंडीगढ़ से आना है तो अलग रूट प्लान तैयार किया गया है।
4. दिल्ली में किस-किस बॉर्डर पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी की गई है?
दिल्ली में सिंघु बॉर्डर के साथ ही गाजीपुर बॉर्डर, लोनी बॉर्डर, चिल्ला बॉर्डर, रजोकरी बॉर्डर, कापसहेड़ा बॉर्डर और कालिंदी कुंज-डीएनडी-नोएडा बॉर्डर पर सुरक्षा के इंतजाम किए गए हैं।
5. कॉमर्शियल वाहनों पर कहां रोक लगी हुई है?
सिंघु बॉर्डर पर सोमवार से ही कर्मशल व्हीकल्स की आवाजाही प्रतिबंधित रहेगी। मंगलवार को बॉर्डर को पूरी तरह सील कर दिया जाएगा।
दिल्ली में विरोध प्रदर्शन करने आ रहे किसान 6 महीने का राशन-पानी लेकर आ रहे हैं। किसानों को मनाने के लिए सरकार ने अपने स्तर से तैयारी तेज कर दी है। सरकार के मंत्री पीयूष गोयल ने मोर्चा संभाल रखा है। किसानों के यूनियन से बातचीत की जा रही है। इस बीच दिल्ली पुलिस ने सभी सीमाओं को पूरी तरह सील कर दिया है।