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स्त्री और पुरुष पूरक या प्रतिद्वंद्वी  

 

 

रिपोर्ट राकेश पाटीदार

 

 

दबंग केसरी देपालपुर मप्र

लेखिका: पिंकी परुंथीं “अनमामिका बारा राजस्थान

आज का विषय बहुत महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है । इस विषय विषय पर मेरे विचार स्त्री होते हुए भी, थोड़े अलग हैं। मैं मानती हूँ और चाहती भी हूँ कि स्त्री, पुरुष यदि पति पत्नी हैं तो पूरक ही हैं, बशर्ते कि दोनों एक-दूसरे के लिए समर्पित हैं। इस रिश्ते में विश्वास सबसे महत्वपूर्ण है। प्रतिद्वंद्वी तो व्यवसाय, परीक्षा, प्रतियोगिता में होते हैं फिर चाहे वो प्रतियोगिता स्त्री पुरुष के बीच हो, स्त्री स्त्री के बीच हो या फिर पुरुष पुरुष के बीच हो।

बचपन से ही बच्चियों में कूट कूट कर भर दिया गया है कि वे पुरुष के बराबर हैं, बल्कि आगे हैं, वे चाहे जो काम कर सकती हैं, कहीं पीछे रहने की जरूरत नहीं है और आज हालत यह है कि वे घरेलू जिम्मेदारियों को बिल्कुल भी नहीं समझतीं और समझना ही नहीं चाहती। हर चीज़ में बराबरी, हठ , ज़िद, प्रतिद्वंद्विता , ये सामाजिक रूप से अच्छा नहीं है। बच्चियों को पढ़ाने लिखाने का यह मतलब नहीं है कि उन्हें नैतिकता ना सिखाई जाए। पूछो किसी लड़की से कि यदि दोनों पति-पत्नी काम करने जाते हैं और यदि पत्नी ने घर आकर चाय बनाकर पिला दी तो क्या अनर्थ हो गया, अरे यदि वो रसोई सँभालती है तो पति भी घंटों लाइन में खड़े होकर बाहर के कई काम निपटाता है, यह मात्र एक उदाहरण है । पर ऐसी तमाम बातें कोई समझना नहीं चाहता। नैतिक मूल्यों के पतन के कारण सामाजिक ढाँचा चरमरा रहा है। सिर्फ और सिर्फ पैसा ही प्राथमिकता है। घर की सुख-शाँति , बच्चों की परवरिश, स्वास्थ्य, सब पीछे छूट गया है।

मेरा यह मानना है कि भले ही स्त्री पुरुष, अलग ईकाई हैं पर वैवाहिक बंधन में पूरक ही हैं, और यह बात अचानक ही बड़े होने पर नहीं सिखाई जा सकती, बल्कि माता पिता को बचपन से ही लड़कों से बाहर के काम और लड़कियों को घर के काम सिखाना चाहिए। अब इसमें भी कोई कहे कि भई, ऐसा क्यों, हम तो लड़की से भी बाहर के काम और लड़के से घर के काम कराएँगे तो जरूर कराइये , इसमें कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि दुर्घटना और आपातकाल में यह जरूरी भी है। कहने का मतलब है कि घर के बाहर वाली प्रतिद्वंद्विता घर में आ गई तो निश्चित ही दुष्परिणाम होंगे। आज़ाद ख्यालों की वजह से लड़कियाँ पथभ्रष्ट हो रही हैं। घर नहीं बचा पा रही हैं।

यदि बाहर निकल कर काम करने का फैसला किया है तो स्वयँ को दया और सहानुभूति का पात्र कभी न बनाएँ, जिसका दूसरे ग़लत इस्तेमाल कर लेते हैं, फायदा उठाते हैं और आप शोषित होती हैं और जान भी नहीं पातीं कि आपका शोषण हो रहा है।

जिन्दगी को प्रेम से बिताना चाहते हैं तो कुछ जगहों पर झुक कर काम चलाया जाए तो कोई आपत्ति नहीं, आत्मसम्मान को ठेस पहुँचे तो प्रतिरोध आवश्यक है।

मेरे विचारों से कोई आहत हैं तो क्षमा करें।

स्त्री पुरुष पूरक बनकर रहें, ये मेरी हार्दिक इच्छा है!!!!!

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