आष्टा आंगनवाड़ी में शौचालय और पानी की टंकी कमी: बच्चों के बैठने के लिए टेबल तक नहीं पंखे भी गायब है
आष्टा रिपोर्टर :संदीप छाजेड़
*मनुष्य का सबसे मौलिक अधिकार है स्वच्छता और सुविधा का अधिकार। लेकिन, आष्टा आगनवाड़ी में कई अधिकारी इस अधिकार से बच्चों को वछित करने में लगे है । आष्टा एवम ग्रामीण क्षेत्र में, आंगनवाड़ी में शौचालय की अभावता और पानी की कमी की समस्या अभी भी गहरी है।*सुविधा के अभाव में बच्चे भी आंगनबाड़ी में आना पसंद नहीं करते हैं किसी आंगनवाड़ी में दो बच्चे हैं किसी में 4 बच्चे किसी आगनवाड़ी में आना ही नही चाहते हैं
बच्चों के लिए खासकर, यह समस्या एक बड़ी वजह है। अनेक बार उन्हें आगनवाड़ी से शौच करने खुले में जाना पड़ता है, जो उनकी सेहत और अध्ययन को प्रभावित कर सकता है।*
*सरकारी अधिकारियों को चाहिए कि वे इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान दें और शौचालय और पानी की सुविधा को सुनिश्चित करें। साथ ही, समाज के सभी स्तरों पर जागरूकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है, ताकि इस समस्या का समाधान सम्पन्न हो सके।*
जब इन गरीब बच्चों की हक की लड़ाई अगर यदि कोई सामाजिक बंधु या कोई पत्रकार इन गरीब के बच्चों के हमदर्द बनकर आवाज उठाते है तो आष्टा के कुछ लोग अपने आप को ज्ञानी बताकर
पत्रकार पर दबाव बनाते हैं और कहते हैं की महिलाओं कार्यकर्ता से दूरी रहो फायदे में रहोगे आखिर यह महिला कार्यकता उनकी लगती क्या है और इस विभाग से इतनी हमदर्दी क्यों यदि महिला कर्मचारियों से इतना लगाव है तो इन गरीबों के बच्चों से क्यों नहीं आखिर पत्रकार को क्यों दबाया जाता है? आखिर इन
गरीब के बच्चों के भविष्य और सेहत के साथ खिलवाड़ क्यों हो रहा है, और उन्हें इसके लिए सुविधाजनक और स्वस्थ माहौल की आवश्यकता है।* सरकार तो अपनी योजना को हर गरीब वर्ग के व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए अपना काम करती है *
लेकिन कुछ अधिकारी और कर्मचारियों की मिली भगत से गरीब का हक छीना जाता है ? सरकार योजना बनाने में कोई कसर नही छोड़ती । लेकिन सिस्टम में बैठे बाहुबली अधिकारी नही चाहते की गरीब के बच्चो को शासन की योजना का लाभ मिले अच्छा भोजन मिले, अच्छी शिक्षा मिले, यह बात इसलिए कहना पड़ रही है क्योंकि आष्टा की अधिक आंगनबाड़ियों के हाल यही है ना अच्छा भोजन, ना कोई शिक्षा है। नहीं बैठने की व्यवस्था है नहीं शोचालय में शौच करने की व्यवस्था है
सिर्फ कार्यकर्ताओं सहायका एवं अधिकारियों का कमाई का जरिया बनकर रह गई सारी आंगनवाड़ियां ?