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सुप्रीम कोर्ट ने कहा अफसर जज नहीं, बुलडोजर में मनमानी की तो उनसे वसूली होगीः सुप्रीम कोर्ट

रिपोर्टर मोहम्मद अय्युब शीशगर

नई दिल्ली/इंदौर/भोपाल

सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में सख्ती के नाम पर होने वाली बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगा दी। बुलडोजर कार्रवाई अराजकता का प्रतीक है। यह आखिरी विकल्प होना चाहिए। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा, ‘आम नागरिक के लिए अपना घर बनाना सालों की मेहनत और सपनों का नतीजा है। इसलिए

सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में सख्ती के नाम पर होने वाली बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगा कर कोर्ट ने कहा, बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए किसी के घर पर बुलडोजर चलाना असंवैधानिक है। कानून का शासन लोकतांत्रिक सरकार की नींव है। कानून का राज यह सुनिश्चित करता है कि लोगों को पता हो कि उनकी संपत्ति मनमाने ढंग से नहीं छीनी जाएगी। सजा के नाम पर किसी का आशियाना छीनने की अनुमति हमारा संविधान नहीं देता है।’

*मप्र में ऐसी कार्रवाई के 2 प्रमुख उदाहरण*

• *छत्तरपुर* 21 अगस्त को कोतवाली थाने पर पथराव हुआ। इसके 24 घंटे के भीतर आरोपी की 20 हजार स्क्वायर फीट में बनी हवेली बहाई गई।

• *रतलाम* मोहम्मद हुसैन के बेटे सलमान की इस साल 13 जून को सामप्रदायिक हिंसा मामले में गिरफ्तारी। अगले ही दिन पुश्तैनी घर गिराया गया।

*एक व्यक्ति के अपराध पर उसका घर तोड़ देना परिवार के लिए सामूहिक सजा*

• पीठ ने कहा- सरकार या अफसर मनमानी नहीं कर सकते। शक्तियों का मनमाना उपयोग करने वाले अफसरों को बख्शा नहीं जा सकता। कार्यपालिका धारणा से किसी को दोषी नहीं ठहरा सकती। आरोपियों के अधिकारों का हनन हो तो क्षतिपूर्ति होनी चाहिए।

• ताकतवर ही जीतेगा जब अफसर नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों से अलग उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना काम करते हैं, तो बुलडोजर कार्रवाई का भयावह दृश्य अराजक स्थिति की याद दिलाता है, जहां ‘ताकतवर ही जीतेगा।’

• आश्रय मौलिक अधिकारः किसी एक संपत्ति को अचानक ध्वस्त किया जाए और बाकी को न हुआ जाए तो साफ है- मकसद बिना कानूनी प्रक्रिया के सजा देना था। आश्रय का अधिकार मौलिक अधिकार है। किसी का घर छीनना है तो संतुष्ट करना होगा कि एक हिस्सा नहीं, पूरा घर गिराना ही विकल्प था।

• आसमान नहीं टूटेगा। घर में रहने वाला एक व्यक्ति आरोपी है तो क्या पूरा घर बहाना उचित है? किसी एक व्यक्ति के आरोपी या दोषी होने पर उसका घर गिरा देना, पूरे परिवार को ‘सामूहिक सजा’ देने जैसा होगा। संविधान और न्यायशास्त्र इसकी अनुमति नहीं देता। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को रातो-रात सड़क पर लाना, उन्हें उनके घरों को बहाते देखना भयावह है। अफसर कुछ समय रुक जाएंगे तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा।

*बुलडोजर एक्शन पर ‘सुप्रीम’ दिशा-निर्देश*

• संबंधित प्राधिकारी संपत्ति मालिक को व्यक्तिगत पक्ष रखने का अवसर दें। इस बैठक का विवरण सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हो।

• ध्वस्तीकरण के लिए 15 दिन पहले कारण बताओ नोटिस जारी हो।

• अनधिकृत निर्माण डहाने की वीडियोग्राफी करवाई जाए। इसकी रिपोर्ट संबंधित स्थानीय निकाय अपने पोर्टल पर प्रदर्शित करे।

• नोटिस की एक प्रति पंजीकृत डाक से संपत्ति के मालिक को भेजी जाए। दूसरी प्रति संपत्ति के बाहर चिपकाए जाए।

• नोटिस में स्पष्ट रूप से बताया जाए कि अनधिकृत निर्माण की प्रकृति, नियम उल्लंघन का विवरण और कार्रवाई का आधार क्या है।

• संपत्ति ढहाने का अंतिम नोटिस जारी करते समय अधिकारी मकान मालिक द्वारा अपने पक्ष में दी दलीलों का भी विवरण दें।

• अगर कोई अधिकारी हमारे दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करे तो उसके खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई शुरू हो।

• संपत्ति ढहाने का कारण बताओ नोटिस जारी होते ही इसकी सूचना कलेक्टर ऑफिस को दी जाए।

• अफसरों को बताएं कि अगर वे गलत तरीके से बुलडोजर एक्शन में लिप्त मिले तो ध्वस्त संपत्ति का दोबारा निर्माण उन्हें करवाना होगा। क्षतिपूर्ति के अलावा उन्हें व्यक्तिगत हर्जाना देना होगा।

• निर्माण का एक हिस्सा अनधिकृत है तो यह बताना होगा कि पूरी संपत्ति ढहाना एकमात्र विकल्प क्यों है?

• बुलडोजर एक्शन के अंतिम आदेश के खिलाफ अपील और न्यायिक जांच का मौका संपत्ति मालिक को मिले। भले ही अपीलीय प्राधिकारी और जवाब देने के लिए पहले समय दिया गया हो। अंतिम नोटिस के 15 दिन के भीतर कोई कार्रवाई न हो।

• हर राज्य के स्थानीय प्राधिकरण 3 महीने में डिजिटल पोर्टल बनाएं। इसमें संपत्ति का विवरण, नोटिस भेजने, नोटिस चिपकाने, संपत्ति मालिक का जवाब, उसके साथ हुई बैठकें, अंतिम नोटिस और आदेश का पूरा ब्योरा हो।

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