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तीन दिवसीय “महादेव” भोजपुर महोत्सव शुरूप्रदेश के माननीय उप मुख़्यमंत्री श्री जगदीश देवड़ा ने किया महोत्सव का शुभारंभ 

रिपोर्टर अमित जैन

रायसेन (जिला ब्यूरो चीफ) मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग द्वारा जिला प्रशासन #रायसेन के सहयोग से महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर प्रतिवर्षानुसार भोजपुर स्थित विश्व प्रसिद्ध शिव मंदिर प्रांगण में “महादेव” भोजपुर महोत्सव 26 से 28 फरवरी, 2025 तक आयोजित किया जा रहा है। समारोह के पहले दिन प्रदेश के उप मुख़्यमंत्री श्री जगदीश देवड़ा, भोजपुर विधायक सुरेंद्र पटवा तथा सांची विधायक विधायक प्रभुराम चौधरी द्वारा महोत्सव का शुभारंभ किया गया। इस अवसर पर पूर्व केबिनेट मंत्री श्री रामपाल सिंह, कलेक्टर श्री अरुण विश्वकर्मा, स्थानीय जनप्रतिनिधी, श्री राकेश शर्मा सहित बड़ी संख्या में श्रोतागण भी उपस्थित रहे। महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर उप मुख्यमंत्री श्री जगदीश देवड़ा ने कहा कि भोजपुर का मंदिर महाभारत कालीन है, इस मंदिर की प्रसिद्धी पुरे विश्व में है। आज मध्य प्रदेश ऐसा राज्य है जहां अपनी लोक संस्कृति को पुरे देश में सबसे अधिक बढ़ावा देने का कार्य किया जा रहा है। सरकार धार्मिक स्थलो पर विविध कार्यक्रम करा कर संस्कृति को बढ़ावा दे रही है। इस अवसर पर सुरेंद्र पटवा ने कहा कि आज भोजपुर में एक लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने बाबा के दर्शन किये। वहीँ श्री चौधरी ने कहा कि श्री सुंदरलाल पटवा जी ने इस महोत्सव को शुरू किया था, आज हजारों लोग इस महोत्सव का आनंद लेने आते हैं।

महोत्सव में लोक गीत, संगीत और नृत्य के सांस्कृतिक स्वरूपों में भगवान शिव की महिमा दर्शायी जायेगी। कार्यक्रम प्रतिदिन सायं 6:30 बजे से शुरू होगा, जिसमें श्रोताओं का प्रवेश निःशुल्क रहेगा।

संचालक, संस्कृति श्री एन.पी. नामदेव ने बताया कि तीन दिवसीय समारोह में आराध्य शिव के गीत-संगीत से भक्ति रस की पावन गंगा बहेगी। शाम की पहली सभा में खरगोन के शिव भाई गुप्ता का लोकगायन हुआ। उनकी सुमधुर वाणी ने निकले भक्ति गीतों ने श्रोताओं के अंतर्मन को भक्ति रस से भिगो दिया। बसंत की ढलती शाम के बीच उन्होंने महादेव की नगरी में जैसे ही भोले बाबा, म्हारा भोले बाबा, जटा म गंगा की धारा… गीत पेश किया, श्रोता उनकी स्वर लहरियों के बीच अलौलिक भक्ति में लीन हो गए। भगवान और भक्तों के बीच सुरों का सेतू बनाते हुए शिव भाई ने भोजपुर के लिए विशेष गीत जको गला म काला-काला नाग, देखो भाई भोजपुरम्… पेश किया। आदि-अनादि शिव का आह्वान करते हुए भोलेबाबा की आई रे बारात प्यारी लाग शिवरात्रि… गीत सुनाते हुए उन्होंने शिव के प्रति अपने कठ माधुर्य से प्रेम और समर्पण को दिखाया। गीतों की बेला को आगे बढ़ा हुए उनके कंठ से निकला हर स्वर भोजपुर की समीरण में भक्ति की महक घोल रहे थे। कार्यक्रम को विस्तार देते हुए उन्होंने भोला शम्भू परणंन क चलिया तजि गड चौव दुल्लव क देखी मन हर्ष रहि रे गॉवरा…, रनु बाई पाणी का जाए जाये बड़ी खटका सी लंबी चोटी न लाल फुन्दों पाणी भर मटका सी…. मारी पार्वती क डुबाई दि महारा नाथ और म्हारी नथनी खवाई गयी नाचनम… की प्रस्तुति देकर निमाड़ की पावन संस्कृति को मंच पर जीवंत किया।

शाम की ठंडी बयार के बीच अगली प्रस्तुति बुंदेलखंड की ऐतिहासिक धरा से जुड़े प्रसिद्ध बधाई नृत्य की हुई। अभिलाष चौबे और साथी कलाकारों ने लोकनृत्य के माध्यम से जनपदीय संस्कृति के उल्लास को मंच पर बिखेरा। बधाई लोक नृत्य बुंदेलखंड अंचल का लोकप्रिय नृत्य है। इसे स्त्री एवं पुरुष दोनों ही मिलकर करते हैं। विवाह, तीज, त्यौहार, शिशु जन्म जैसे मांगलिक कार्य और धार्मिक अनुष्ठान के समय इस नृत्य को बुंदेलखंड में किए जाने की परंपरा रही है।कलाकार ढोलक, टिमकी, बांसुरी, लोटा और रामतुला जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ गारी गीत गाते हैं। भोजपुर महोत्सव में आए इन योगियों ने जन्म लियो रघुरैया अवध में बाजे बधाइयां…, कोना घड़ी में राम रघुरैया कोना में किशन कन्हैया अवध में बाजे बधाइया…, नैना बंद लागे कहियो चोली बंद लागे कहियो, पीपर को पत्ता डुलत नैया… और लाल रंग डारो गुलाबी रंग डारो और रंग डारो केसरिया जे बंसी वारे सांवरिया नैना बंद… जैसे गीतों पर प्रस्तुति दी। प्रस्तुति में गायन में आदित्य प्रजापति, ढोलक पर लीलाधर बेन, टिमकी पर अक्षय तिवारी, रामतुला पर आदर्श मिश्रा ने संगत दी।उज्जैन की हीरामणी वर्मा और उनके साथी मटकी नृत्य के माध्यम से भोजपुर के आकाश में अठखेलियां करते चंद्रमा की चंचलता को प्रकृति पर उतार लाए। नृत्य और गायन में उनकी वर्षों की साधना की झलक दिखाई दे रही थी। मालवा की लोकनृत्य मटकी, मांगलिक कार्यों और त्योहारों के अवसर पर ढोल की थाप पर किया जाता है। इसमें महिलाएं समूह में घुंघट निकालकर यह नृत्य करती हैं। इसमें आडा, खड़ा, रजवाड़ी, डंडे, मटकीऔर फूंदी नृत्य के साथ आखिरी में हाथों में घड़े लेकर सांगीतिक धुनों पर मटक-मटक कर नृत्य किया जाता है। कलाकारों ने सायबा म्हारे लईदो करण फूल झुमको…, भम्मर पेरूं तो म्हारी सासू लड़े…, उदिया तो पुर से सायबा बीज मंगाव…, हो जी देस परायो रईवर आवंगा… और हूं तो केसूर बिजूर का हाट गई… जैसी गीतों पर लोकनृत्य पेश किया।भोजपुर महोत्सव में ऋषभ शर्मा ने अपनी मधुर और भक्तिमय प्रस्तुति से श्रोताओं को संगीतमयी यात्रा पर ले गए। प्रस्तुति की शुरुवात “तिलक कामोद” राग में अपने घराने की परम्परा की झलक पेश कर श्रोताओं को संगीत की एक अद्भुत दुनिया में प्रवेश कराया। इसके बाद, उन्होंने “शंकरा” की मनमोहक धुन से माहौल को भक्तिरस से सराबोर कर दिया। कार्यक्रम में आगे बढ़ते हुए, ऋषभ शर्मा ने “ॐ नमः शिवाय” की भक्ति में लीन प्रस्तुति दी, जिससे पूरे पंडाल में शिवमय वातावरण बन गया। फिर, उन्होंने “शिव कैलाशवासी धौली धरों के राजा शंकर संकट हर ना (शिव शम्भो हरणा ) शंकर संकट हरना ” गाकर भोलेनाथ की महिमा का गुणगान किया। इतना ही नहीं, ऋषभ शर्मा ने अपने गायन में शास्त्रों और नीति को भी शामिल किया। उन्होंने “चाणक्य” और “कौटिल्य” से जुड़ी रचनाएं प्रस्तुत कर दर्शकों को भारतीय संस्कृति और ज्ञान परंपरा की झलक दिखाई। अंत में, उन्होंने ‘तांडवम’ में जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌। की शानदार प्रस्तुति से पूरे माहौल को ऊर्जावान बना दिया। उनकी इस प्रस्तुति में शिव के तांडव की शक्ति और भावनाओं का जबरदस्त संगम देखने को मिला, जिसे सुनकर दर्शक रोमांचित हो उठे। ऋषभ शर्मा की इस संगीतमयी प्रस्तुति ने भोजपुर महोत्सव को यादगार बना दिया, और उनके मंत्रमुग्ध कर देने वाले गायन से हर कोई संगीत और भक्ति की गहराइयों में डूब गया ।

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