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हिंगोट युद्ध परम्परा को विश्व विरासत का हिस्सा बनाया जाय।

रिपोर्ट राकेश पाटीदार

दबंग केसरी न्यूज़ रुणजी गौतमपुरा मप्र हिंगोट युद्ध की तैयारी जोरो से चल रही, है स्थानीय नगर प्रसासन मेले को लेकर बहुत गंभीर है। नगर सुरक्षा समिति, गौतमपुरा थाना, स्वास्थ्य विभाग, अनुविभागीय अधिकारी सभी सामाजिक, संस्थान मिल कर तैयारी करते है यें मेला दुनिया का ऐसा पहला ऐसा मेला है जो अपने आप ही अनूठी परम्परा के लिए प्रशिद्ध है, इंदौर मुख्यालय से 60 किमी दुरी गौतमपुरा की पावन धरा पर खेला जाता है, जो बहुत खतरनाक के साथ साथ आपसी भाई चारे को निभाने वाली रस्म है।जो कही और नहीं इसको कई सामजिक और धार्मिक सस्थान विश्व धरोहर को संजोने के लिए मांग कर रही है।

*ना आयोजन करने वाले ना प्रायोजित करने वाला कोई मंच

नगर पंचायत रुणजी गौतमपुरा में पीढ़ियों पुरानी परम्परा देखी जा सकती है वैसे तो युद्ध ओर लड़ाई विनाश के प्रतीक है किंतु यहां पर होने वाला हिंगोट युद्ध प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है प्रति वर्ष अनुसार इस वर्ष भी दीपावली के दूसरे दिन 1 नवंबर याने धोक पड़वा के दिन शाम पांच बजे से हिंगोट युद्ध का आयोजन किया जाएगा हिंगोट युद्ध प्रदेश नहीं बल्कि पूरे देश में मात्र यही एक जगह होता है जिसे देखने के लिए बड़ी दूर दूर से हजारों को संख्या में लोग आते है हिंगोट युद्ध यहां की परम्परा है ये कब से है और क्यों है इसके बारे में लोगो को कोई जानकारी नहीं है बड़े हो या बूढ़े सब यही कहते हैं की हमारे बाप दादा के जमाने से चली आ रही है इस परम्परा को आज का युवा भी चला रहा है

हिंगोट एक हिंगोरिया नामक वृक्ष का फल होता है।

उसे खोखला कर उसमें बारूद भर कर तैयार किया जाता है जिसे तैयार करने में लगभग पंद्रह से बीस दिन का समय लगता है एवं एक हिंगोट का बीस से पच्चीस रुपए का खर्च आता है जो योद्धा स्वयं अपनी जेब से खर्च करता है तब कही जाकर हिंगोट ( अग्निबाण ) तैयार होता है जिसे जलाकर सामने वाले योद्धा पर वार किया जाता है जिसमें कई योद्धाओं को चोट आती हैं कई योद्धाओं के कपड़े भी जल जाते हैं इसके बाद भी स्थानीय लोग अपनी इस अनूठी परम्परा को बनाए हुए है धोक पड़वा के दिन हिंगोट युद्ध मैदान में मेला लगता है शाम पांच बजे दोनो दल जो की तुर्रा ओर कलंगी के नाम से होते है दोनो दल के योद्धा साफा बांध कर कांधे पर हिंगोट का झोला ओर हाथों में ढाल लेकर ढोल धमाकों के साथ युद्ध मैदान में पहुंचते है यहां सर्व प्रथम भगवान देवनारायण के दर्शन कर शाम को कुछ अंधेरा होते ही युद्ध शुरू हो जाता है जलते हुए हुए हिंगोट से एक दूसरे के आमने सामने वार किए जाते है युद्ध बहुत ही रोमांचकारी होता है इस युद्ध में कोई हार या जीत नहीं होती अनार जला कर युद्ध की समाप्ति के पश्चात सभी योद्धा एक दूसरे के गले मिलते ओर शुभ कामनाएं देते हैं युद्ध मैदान के तैयारी भी युद्ध स्तर पर चल रही है दर्शकों की सुरक्षा हेतु नगर पंचायत द्वारा मैदान में आस पास ऊंची ऊंची जाली लगाई गई है जिससे पथ भ्रष्ट हुए हिंगोट से दर्शकों को चोट नहीं लगे हिंगोट युद्ध को लेकर एस पी ग्रामीण हितिका वासल एस डी एम रवि वर्मा एस डी ओ पी राहुल खरे टी आई अरुण सोलंकी और नगर परिषद, नगर सुरक्षा समिति, शांति समिति,की टीम तैयारी में लगी हुई है जो परम्परा के साथ इतिहास के लिए भी अनुठी है।

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