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दिव्यांग के खेल आयोजन ने जनपद बाग के प्रशासनतंत्र की पोल खो दी?

संवाददाता संजय देपाले

*धार (बाग)* प्रशासनतंत्र के जनजातीय विभाग की स्कूली शिक्षा मे पढ़ रहे उन दिव्यांग बच्चौं की मनोभावनाओं के मद्देनजर शासन की और से उनमें छिपी हुई प्रतिभाएं उनकी काबलियतता के प्रर्दशन के मद्देनजर रखतें हुए उनके मनोरंजन एवं कौशलबुद्धि एवं विकास तथा उनमें छिपी प्रतिभाओं के प्रदर्शन तथा छात्र जीवन मे वे अपने आपको उपेक्षित न समझे इसलिये शासन ने एक अभिनव पहल की गई उनके काबिल खेल प्रतिभागियों की,जो कि एक सराहनीय व स्वागत योग्य कही जा सकती है।परन्तु आदिवासी बाहुल्य जनपद बाग मे यह पहल सम्बन्धित अधिकारियों के निकम्मे पन के चलते दुखद यह रही की जनपद बाग का जनजातीय विभाग इस प्रतियोगिता के लिये भी मात्र औपचारिकता करता दिखा नजर आया।इसके मूल मे बी.आर.सी. की सर्वाधिक लापरवाही सार्वजनिक रुप से नजर आई।उन्होंने इस कार्यक्रम के लिये दिव्यांग बच्चौं की सहभागिता के लिये कोई प्रयास नही किये लगता नजर आता है।क्योंकि ये मैडम साहिबा सिर्फ अपनी नौकरी की अपने आफिस की डयूटी निभाती नजर आती है उनको फील्ड मे शिक्षा का स्तँर या शिक्षण सामग्रियों का उपयोग या शासन की योजनाओं से कोई मतलब नजर नही आता दिखता है। उनको इस वनवासी क्षेत्र मे शिक्षा की जिम्मेंदारियों से कोई मतलब भी नजर नही आता है।वह नियमों विरुद्ध बरसों से जमें उन कर्मचारियों की गिरफ्त है जो अगंद के पैर की तरह यहां जमे होकर राजनीतिक सेटिंग्स के मास्टरमाइंड है, जिनसे उन बी.आर. सी. महोदया को आफिस डयूटी के लिए जिम्मेदार लोगो का संरक्षण मिलता रहे?

यही कारण है कि शासन की अनेकानेक योजनाओं का न तो क्रियान्वयन का वे फिल्ड मे चेक करती है न शिक्षा के स्तँर को सुधार का प्रयास कर पाती है।बी.आर.सी.महोदया की यह काबलियतता जरूर है कि वे बाग से 45 कि.मी.दूर प्रतिदिन राजगढ से सुबह 11 बजे आफिस आती है और वही बैठकर सरकारी कागदपत्रों की खाना पूर्ति कर शाम 05 बजे पूनः अपने निवास चले जाने के क्रम ने इस जनपद का प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षण व्यवस्था को फिल्ड मे बेलगाम कर रखा है।जब कभी जिला मुख्यालय पर बैठक होती है तो राजगढ़ से 45 कि.मी.दुर धार जाकर अपने कर्तव्यों की ईतिश्री कर लेती है। जिसमें शिक्षण कार्यों मे लगे कर्मचारियों की पौबारह हो रही है।

खैर, परन्तु पिछले दिनों म.प्र.शासन ने दिव्यांग दिवस की पूर्व संध्या पर जनजातीय विघालयों मे अध्य्यनरत दिव्यांग बच्चों की खेल प्रतियोगिता के आयोजन के निर्देश थे।जिस आयोजन के लिये शासन से शेड्यूल आता है उसकी औपचारिकता का यह दिव्यांग प्रतियोगिता का आयोजन यही प्रदर्शित करता है कि जनपद बाग की प्रशासनतंत्र की लचर व्यवस्था व राजनीतिक दलों व जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों की उदासीनता को दर्शाता है।इस कार्यक्रम के समापन समारोह ने प्रशासनतंत्र की सारी व्यवस्था ने पोल खोलकर रख दी।जनपद बाग मे इस आयोजन के लिए करीब 249 दिव्यागों का रजिस्ट्रेशन हुआ जिसमें मात्र 41 दिव्यागों का आना जनजाति कार्य विभाग की कार्यप्रणाली स्वतः उजागर करती है।एक तरफ म.प्र.शासन अपने संगठन की अपनी सरकार के माध्यम से जनजातिय क्षेत्रों मे गहरी पैंठ बनाना चाह रहा है इस तरह की परोसी हुई थाली का भोजन भी ठीक ढ़ग से न तो कर पा रहा है न करवा पा रहा है नजर आता है।

खैर ऐसे दिव्यांगों के खेल आयोजन का प्रचार प्रसार कर आमजन को भी इस और आकर्षित करते तो उनकी हौंसलाआफजाई के लिये पब्लिक आती तो दिव्यागों के जीवन मे वे रंग भरते।परन्तु दुखद यह रहा कि इस आयोजन के लिये कोई व्यवस्थाएं तक नही की गई।हालात तो यहां तक बिगड़े बताते है कि बाहर से आये उन दिव्यांग बच्चों के लिये न तो नाश्ता न भोजन की व्यवस्था की गई थी।बी.आर.सी.मैडम ने अपने प्रभाव का उपयोग कर दो स्वसहायता समूहों को अलिखित मौखिक आदेश देकर 25–25 भोजन के पैकेट जो कच्ची पकी रोटी व सब्जी के बुलाकर पटकवा दिये।क्या यही नैतिकता है,परन्तु मजाल है कि किसी भी उफ तक आवाज भी निकली हो या किसी की कलम चली हो।

खैर,प्रचार प्रसार नही किया तो ठीक इस आयोजन के समापन समारोह मे आमजनों के साथ उनके पालकों को भी आमंत्रित कर लिया जाता तो भी उनकी उपस्थिति दिव्यागों की हौंसलाआफजाई करती।परन्तु इन्हें नही बुलाना भी राजनीति षड़यंत्र की बू आती है।क्योंकि आयोजन के समापन पर भी मात्र औपचारिकता पूर्ण कर ली गई न तो टेंट लगवाया गया न माईक समापन करवा दिया जो उनकी सोच का परिणाम हो सकता है।

खैर,इस आयोजन के समापन समारोह मे बी.ई.ओ.की नाराजगी जरूर उजागर हुई उन्होंने मंच से ही सम्बंधित कर्मचारियों को कड़वी घुट्टी पिलाई। परन्तु जिन्होंने कड़वी घुट्टी पी उनका कहना था कि वे चाहते तो इस नाराजगी के लिए आयोजन के पूर्व की तैयारियों की वे मानिटरिंग कर लेते तो बेहतर होता।यह हास्यास्पद स्थिति नही बनती।क्योंकि सम्पूर्ण प्रशासनतंत्र जानता है बी.आर.सी.की कार्यप्रणाली वह तो इस जनपद मे सुस्त व सेटिंग्स वालें राजनेताओं के संरक्षण मे वे टाईम पास कर रही नजर आती है?

जनपद क्षेत्र का यह सम्पूर्ण आयोजन हो गया परन्तु हमेशा की तरह इस जनपद के किसी भी जिम्मेंदार जनप्रतिनिधियों से लेकर नेताओं की चुप्पी इस मर्तबा घोर आश्चर्य कर गई?

खैर जनपद हो या प्रशासनतंत्र के किसी विभाग के कोई कार्यक्रम हो मीडिया को यहां का प्रशासनतंत्र बुलवाना उचित नही समझता है यह देखा गया है।क्योंकि आजकल की सोशलमीडियालाजिस्टिक ने पत्रकारों को दरकिनार कर रखा है या और कारणों से यह जिम्मेंदार व पत्रकार अच्छी तरह से समझते है। परन्तु खबर बनाकर डालने से नही चूकते है?

वैसे तो छात्र-छात्राओं के विभिन्न आयोजनों के लिये लाखों रुपयों की सामग्रियों का खर्च प्रति वर्ष होता है,शायद आयोजन भी मैदान या कागदपत्रों पर होते होगे।इस दिव्यांग आयोजन के भी बील किसी राजनीतिक संरक्षणदाता की किसी संस्था के लग सकते है जिसमें भरपूर नियमानुसार खर्च की समग्र सामग्रियां होगी।अब कोई सूचना के अधिकार का विशेषज्ञ किस तरह जानकारी लेता है भविष्य के गर्त मे रहेगा?

परन्तु पहली मर्तबा दिव्यांगों के मनोरंजन के लिये फील्ड मे आयोजन के लिये प्रशासनतंत्र को धन्यवाद का पात्र है कि कैसे भी इस आयोजन के माध्यम से ऐसे उपेक्षितों के जीवन मे भी रंग भरने का जो प्रयास हुआ सराहनीय व प्रशंशनीय कहा जा सकता है।

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