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पर्यावरण के रक्षक ही बने भक्षक एनजीटी के आदेशों की खुले आम उड़ रही धज्जियां

रिपोर्ट  आर एन पांडे

जुर्माना वसूली और पेंशन का खेल पर्यावरण स्वच्छ हो तो हमारा भविष्य सुरक्षित है 10एकड़ से अधिक एरिया के खुले में कचरों की इकत्री करण नगर निगम एवम संविदा कंपनी के अधिकारियों की मिली भगत

सिंगरौली जिले में लगातार बढ़ते प्रदूषण के कारण आम लोगों का जीवन सुरक्षित नहीं रहा प्रदूषण वायु और जल के कारण लोगों को तरह-तरह की बीमारी हो रही है इसी को रोकने हेतु केंद्र व राज्य सरकार ने पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से कानून बनाए हैं ।और इन कानून का पालन करने की जिम्मेदारी केंद्र एवम राज्य में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन किया है । पर्यावरण कानून के उल्लंघन करने पर दंडित करने हेतु एनजीटी का भी गठन किया गया है । परंतु मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के रोड में कोल ट्रांसपोर्ट हो या फ्लाइएस ट्रांसपोर्ट हो यार फिर स्टोन क्रेशर हो सभी धडल्ले से चल रहे है इसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अधिकारियों की एक नही चलती है।क्यों की यहां पदस्थ क्षेत्रीय अधिकारी द्वारा कभी कोई कार्यावाही की ही नही की जाती है। न ही कभी कार्यालय में उस्थिति मिलती है रजिस्टर हो अलग बात है यहां कुछ ठीक नहीं चल रहा है यहां किया जा रहे सूत्रों से हासिल जानकारी के अनुसार माडा तहसील अंतर्गत के ग्राम करामी में दर्जनों स्टोन क्रेशर संचालित है स्टोन क्रेशर जिनके पास पिछले कई वर्षो से पर्यावरण विभाग की स्वीकृति नही है ।फिर भी स्टोन का प्रोडक्शन 50ट्रक प्रतिदिन किया जा रहा है कार्यों में बहुत गड़बड़ी चल रही है ऐसा नहीं है कि इन गड़बड़ियों की जानकारी आला अधिकारियों को नहीं है पर हालात यहां अंधेर नगरी और चौपट राजा जैसा ही है दरअसल पर्यावरण संरक्षण के लिए पर्यावरण कानून बनाए गए हैं इस कानून के तहत विभिन्न श्रेणी के उद्योगों को संचालन हेतु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से विभिन्न प्रकार की अनुमतिलेनी होती है इन अनुमति का मूल उद्देश्य है कि उद्योगों से निकलने वाली जहरीली हवा बदबू और गंदे पानी सहित रसायन आदि को सीधे-साधे वातावरण में ना छोड़ा जाए इसके रोकथाम के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाना अति आवश्यक है इन उपकरण के लग जाने के बाद ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उद्योगों को संचालन की अनुमति देता है परंतु मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पदस्थ कुछ अधिकारी इन अनुमतियों के रेवाड़ी की तरह बांट रहे हैं निरीक्षण के नाम पर खाना पूर्ति हो रही है आलम यह है कि दस्तावेजों की सही तरीके से जांच तक नहीं होती और यह सब होता है खुलेआम शिकायत को ठंडे बस्ते में डालने में माहिर क्षेत्रय अधिकारियों को बोर्ड मुख्यालय में बैठे आला अधिकारी पूरी तरह से संरक्षण देते हैं नियमों को ऐसे तोड़ा मोरोड़ा जाता है की जैसे इसमें इनको महारथ हासिल कर रखी हो यह यहां के कुछ अधिकारियों ने मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कुछ कार्यों की पड़ताल की तो पाया कि यह पदस्थ कुछ अधिकारी एनजीटी के आदेश को अपने अनुसार उपयोग करने में माहिर हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव एनजीटी ने जुर्माना लगाया था इस जमाने से नाराज मुख्य सचिव जिम्मेदार अधिकारी को नोटिस जारी किया गया था पर हुआ क्या उच्च अधिकारी आज भी इस पद पर विराजमान है उक्त अधिकारी परआला अधिकारी की मेहरबानी ऐसी है। की मुख्य सचिव के नोटिस ने ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा पड़ताल से यह भी सामने आया है कि एनजीटी के आदेश के बावजूद कुछ क्षेत्र अधिकारी द्वारा झूठी रिपोर्ट बनाकर इतिश्री की जा रही है। ऐसा नहीं है कि इस तरह की कार्यप्रणाली के से उच्च अधिकारी अवगत नहीं है।परंतु यहां तो जैसे पूरे कुएं में ही भांग खुली हुई है अधिकारी को एनजीटी के नाम से बोर्ड में अब कोई हवा नही है बल्कि एनजीटी के आदेश का पालन मनमाने तरीके से किया जा रहा है बोर्ड के उच्च सदस्य अधिकारी के नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उद्योगों पर नियम कानून की सख्ती इसलिए नहीं कर पाए क्योंकि ऊपर बैठे आईएएस अधिकारी नाराज हो जाते हैं। इन अधिकारियों को लगता है कि बोर्ड द्वारा उद्योग पर सख्ती करने का उद्देश्य वसूली है इसलिए ज्यादातर क्षेत्रीय कार्यालय में नियम का पालन नहीं हो पता आपको बता दें कि कुछ समय से बोर्ड के तकनीकी पद पर भी आई ए एस अधिकारी की स्थापना है। पहले इस पद पर तकनीकी क्षेत्र में माहिर अधिकारी ही बैठते थे पेंशन की जुगाड़ और इसी का खेल एक और जहां कई मामलों में एनजीटी के आदेश पर बोर्ड के अधिकारी ज्यादा गंभीरता नहीं दिखाई तो वहीं दूसरी ओर अपने निजी लाभ के लिए एनजीटी के आदेश की आड़ में बड़ा खेल चल रहा है। दरअसल पर्यावरण नियम का उल्लंघन करने वालों पर एनजीटी ने पर्यावरण क्षतिपूर्ति लगाने के आदेश दिए हैं ।सूत्रों अनुसार इस आदेश को दिखाकर कई क्षेत्रिय अधिकारियों ने बड़ी-बड़ी वसूली शुरू कर दी है। सूत्रों की मानो तो करोड़ों रुपए का जुर्माना यानी पर्यावरण क्षतिपूर्ति का डर दिखाकर कुछ क्षेत्र अधिकारी तो 15 से 25% तक नगद लेकर बिना जुर्माना लगाए ही अनुमति जारी कर रहे हैं। यानी एनजीटी के आदेश को दिखाए करोड़ों की क्षतिपूर्ति बनाई फिर बिना क्षतिपूर्ति के लिए अनुमति जारी कर दी इससे ऐसे समझाएं की मान लीजिए कि एनजीटी के आदेश के अनुसार यदि किसी उद्योग पर दो करोड रुपए की क्षतिपूर्ति बन रही है तो इस उद्योग से 20% प्रतिशत रुपए लेकर क्षतिपूर्ति की फाइल गायब कर दी जाती है और उक्त उद्योग को पर्यावरण अनुमति जारी कर दी जाती है पर्यावरण क्षतिपूर्ति की फाइल कब बनी और कहां गई यह कुछ क्षेत्रिय अधिकारियों को कुछ आला अधिकारियों के बीच ही रहती है यानी आरटीआई से भी जानकारी नहीं ले सकते उसमें इसलिए नगद देने के लिए राजी हो जाता है क्योंकि वह सस्ता और सरल उपाय है दो करोड़ देने से बेहतर है कि नगद देकर मुक्त हो जाओ ठीक वैसे ही जैसे ₹500 के चालान की जगह ₹100 या 200 देकर निकल जाओ इसलिए ज्यादातर अधिकारी विशेष कर कुछ क्षेत्रीय अधिकारी पेंशन की ज्यादा चिंता नहीं करते आपको पता बता दें की बोर्ड में अन्य सरकारी कर्मचारी जैसी पेंशन सुविधा नहीं है

जब उक्त पूरे मामले की जानकारी क्षेत्रीय पर्यावरण एवम प्रदूषण अधिकारी सिंगरौली के मुकेश श्रीवास्तव से बात करनी चाही तो साहब न सप्ताह भर से कार्यालय आए नही फोन उठाए इसे में उनके कार्य शैली पर सवाल तो उठाना स्वभाविक है

जब को नगर पालिका निगम सिंगरौली से अनुबधित सिटाडेल कंपनी को सहर से कचरा संग्रहण कर के एक उचित अस्थान पर रखना है ।जिस मुद्दे की खबर को ने पिछले माह में प्रमुखता से प्रकाशित क्रिया जिस कार्यवाही करने के लिए आयुक्त न.पा.नी के स्त्येंद्र सिंह धाकरे ने उपायुक्त एवम स्वक्षता प्रभारी। सत्यम मिश्र को कार्याहवाही के लिए निर्देशित किया था किंतु महीने भर हो गए संविदा कंपनी को एक नोटिस तक नही जारी हुई है।

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