
भोपाल को झीलों की नगरी कहा जाता है, लेकिन जब हम इसके दावों की सच्चाई को परखते हैं तो कई रोचक तथ्य सामने आते हैं। सबसे बड़ा दावा यह है कि भोपाल की बड़ी झील यानी भोजताल को राजा भोज ने 11वीं शताब्दी में बनवाया था। यह आंशिक रूप से सही है, इतिहासकार मानते हैं कि राजा भोज ने तालाब का प्रारंभिक स्वरूप बनवाया था लेकिन इसके बाद कई शताब्दियों में इसमें बदलाव और विस्तार होते रहे और 1965 में बने भदभदा बांध ने इसकी संरचना को नया रूप दिया। दूसरा दावा यह है कि भोपाल में कुल 12 झीलें हैं, जिनमें से 9 पूरी तरह से सीवेज तालाब बन चुकी हैं। फ्री प्रेस जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार नगर निगम क्षेत्र की झीलों में नालों का पानी सीधे जा रहा है और केवल भोजताल, केरवा व कलियासोत का पानी ही शुद्धिकरण के बाद पीने योग्य माना जाता है। यह दावा कठोर जरूर है लेकिन झीलों के प्रदूषण की वास्तविकता से इंकार नहीं किया जा सकता। तीसरा बड़ा दावा यह है कि भोजताल पर लगातार अतिक्रमण हो रहा है और प्रशासन उदासीन है। टाइम्स ऑफ इंडिया और अन्य स्रोतों ने पुष्टि की है कि झील के किनारों पर अवैध रिसॉर्ट और घर बन गए हैं, पेड़ काटे गए हैं और कचरा फेंका जा रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कई बार भोपाल प्रशासन को फटकार लगाई लेकिन कार्यवाही धीमी है। चौथा दावा यह है कि भोजताल बहुत विशाल और गहरा है। आंकड़े बताते हैं कि इसका क्षेत्रफल लगभग 31 वर्ग किलोमीटर है, औसत गहराई 6 मीटर और अधिकतम गहराई 11 मीटर तक है। यह तथ्य सही है लेकिन यह स्थिति झील के पूर्ण जल स्तर पर ही लागू होती है, कम बारिश और अत्यधिक उपयोग से जल स्तर घटता-बढ़ता रहता है। पाँचवा दावा यह है कि भोजताल और छोटा तालाब मिलकर रामसर वेटलैंड का हिस्सा हैं और यहाँ 250 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह दावा पूरी तरह से सही है और पर्यावरणीय रिपोर्ट्स इसकी पुष्टि करती हैं। कुल मिलाकर भोपाल की झीलों पर फैक्ट चेक यह बताता है कि झीलों का इतिहास गौरवशाली जरूर है लेकिन वर्तमान स्थिति संकटपूर्ण है। प्रदूषण, अतिक्रमण, जल स्तर की गिरावट और प्रशासनिक लापरवाही सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं। अगर समय रहते सख्त कदम नहीं उठाए गए तो झीलों की नगरी कहे जाने वाला भोपाल केवल नाम भर रह जाएगा।


मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की झीलें: मिथक और हकीकत का फैक्ट चेक">







